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पृष्ठ:कपालकुण्डला.djvu/१४

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प्रथम खण्ड
 

निम्न भागमें भी कंटीली झाड़ी, भाऊ और वन-पुष्पके ही छोटे-छोटे पेड़ दिखाई पड़ते हैं।

ऐसे ही नीरस जंगलमें साथियों द्वारा नवकुमार अकेले परित्यक्त हुए। पहले लकड़ीका बोझ लेकर जब वे नदी किनारे आये तो उन्हें नाव दिखायी न दी। अवश्य ही उस समय उनके मनमें डर पैदा हुआ किन्तु सहसा उन्होंने विश्वास न किया कि उनके साथी उन्हें इस प्रकार छोड़कर चले गये होंगे। उन्होंने विचार किया कि ज्वारका जल बढ़ जानेके कारण उन लोगोंने अपनी नाव कहीं किनारे दूसरी जगह लगा रखी होगी। शीघ्र ही वे लोग खोज लेंगें और नावपर चढ़ा लेंगे। आशासे वह बहुत देरतक किनारे खड़े रहे। लेकिन नाव न आई। नावका कोई आरोही भी दिखाई न दिया। नवकुमार भूख से व्याकुल होने लगे। प्रतीक्षा न कर अब नवकुमार नदी के किनारे-किनारे नावकी खोज करने लगे, लेकिन कहीं भी नावका कोई निशान भी दिखाई न दिया, अतः लौटकर फिर अपनी पहली जगह पर आ गये। फिर भी, नावको वहाँ पहुँची न देखकर उन्होंने विचार किया कि ज्वारके वेगसे मालूम होता है नाव आगे निकल गयी है, अतः अब प्रतिकूल धारापर नाव पलटानेमें जान पड़ता है, साथियों को विलम्ब लग रहा है। लेकिन धीरे-धीरे ज्वारका वेग भी शान्त हो गया। अतः उन्हें आशा हुई कि साथी लोग भाटेमें अवश्य लौटेंगे, किन्तु धीरे-धीरे भाटेका वेग दोबारा बढ़ा, फिर घटने लगा और उसके साथ ही सूर्यास्त हो गया। यदि भाटेमें नावको वापस होना होता, तो अबतक वह कभीकी आ गई होती?

अब नवकुमारको विश्वास हो गया कि या तो ज्वार-वेगमें नाव उलटकर डूब गयी है, अथवा साथियोंने ही मुझे छोड़ दिया है।