अब घटि प्रगट भये रांम राई,
सोधि सरीर कनक की नांईं ॥ टेक ।।
कनक कसौटी जैसे कसि लेइ सुनारा,
सोधि सरीर भयो तन सारा ॥
उपजत उपजत बहुत उपाई,
मन थिर भयौ तबै थिति पाई ॥
बाहरि षोजत जनम गंवाया,
उनमनीं ध्यांन घट भीतरि पाया ।
बिन परचै तन काँच कथीरा,
परचै कंचन भया कबीरा ।। १७ ।।
हिंडोलनां तहां झूलै प्रातम रांम ।
प्रेम भगति हिंडालना,सब संतनि कौ विश्रांम ॥ टेक
चंद सूर दोइ खंभवा,बंक नालि की डोरि ।
भूलैं पंच पियारियां,तहां झूलै जीय मोर ।।
द्वादस गम के अंतरा,तहां अमृत कौ ग्रास ।
जिनि यहु अमृत चाषिया,सो ठाकुर हंम दास ।।
सहज सुंनि कौ नेहरौ,गगन मंडल सिरिमौर ।
दोऊ कुल हम आगरी,जौ हंम झूलैं हिंडोल ।।
अरध उरध की गंगा जमुनां,मूल कवल कौ घाट ।
षट चक्र की गागरी,त्रिवेणी संगम बाट ।
माद व्यंद की नावरी,रांम नांम कनिहार ।
कहै कबीर गुंण गाइ ले,गुर गंमि उतरौ पार ॥ १८ ॥
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कबीर-ग्रंथावली