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पृष्ठ:कबीर ग्रंथावली.djvu/१७९

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पदावली

को बीनैं प्रेम लागौ री,माई को बोनैं
रांम रसांइण माते री,माई को बोनैं ।। टेक ॥
पाई पाई तूं पुतिहाई,
पाई की तुरियां बेचि खाई री,माई को बीनैं ।
ऐसैं पाई पर विथुराई,
त्यूं रस आंनि बनायौ री,माई को बीनैं ।
नाचै तांनां नाचै बांनां,
नाचै कूंच पुरांनां री,माई को बीनैं ।।
करगहि बैठि कबीरा नाचे,
चूहै काट्या तांनां री,माई को बीनैं ॥ १६ ॥

 मैं बुनि करि सिरांनां हो रांम,नालि करम नहीं ऊबरे ॥टेक॥
दखिन कूंट जब सुनहां भूंका,तब हम सुगन विचारा। .
लरकं परकं सब जागत हैं,हम घरि चार पसारा हो रांम ।।
तांनां लींन्हां बांना लींन्हां,लींन्हें गोड के पऊवा।
इत उत चितवत कठवन लींन्हां,मांड चलवनां डऊवा हो रांम ॥
एक पग दोइ पग त्रेपग,संधे संधि मिलाई ।
करि परपंच मोट बँधि आयो,किलि किलि सबै मिटाई हो रांम ।
तांनां तनि करि बांनां बुनि करि,छाक परी मोहि ध्यांन ।
कहै कबीर मैं बुंनि सिरांनां,जांनत है भगवांनां हो राम ॥२०॥

 तननां बुननां तज्या कबीर,रांम नांम लिखि लिया सरीर ॥टेक॥
जब लग भरौं नली का बेह,तब लग टूटै रांम सनेह ॥
ठाढी रोवै कबीर की माइ,ए लरिका क्यूं जीवैं खुदाइ ।
कहै कबीर सुनहुं री माई,पुरणहारा त्रिभुवन राई ॥२१॥