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परिशिष्ट

करौ अरदास गाव किछु बाकी । लेउ निबेर आज की राती ॥ •
किछु भी खर्च तुम्हारा सारौ । सुबह निवाज सराइ गुजारौ ।।
साध संग जाकौ हरि रंँग लाना । धन धन सो जन पुरुष सभागा॥
ईत ऊत जन भदा सुहेले । जाम पदारथ जीति अमोले ॥
जागत सोया जन्म गंवाया। माल धन जोरया भया पराया ।
कहु कबीर तेई नर भूले । खसम बिसारि माटी संग रूले ॥८॥
अल्लह एकु मसीति बसतु है अवर मुलकु किसु केरा ।
हिंदू मूगति नाम निवानी दुहमति तत्तु न हेरा !।
अल्लह राम जीव तेरी नाई । तू करीमह राम तिसाई ।।
दक्खन देस हरी का वामा पच्छिम अल्लह मुकामा ।
दिल महि खोजि दिलै दिल खोजहु एही ठौर मुकामा ।।
ब्रह्म न ज्ञास करहि चौबीसा काजी महरम जाना।
ग्यारह मास पास कै राखे एकै माहि निधाना ।।
कहा रडी से मज्जन कियां क्या मनीत सिर नायें।
दिल महि कपट निवाज गुजारै क्या हज काबै जायें ।
एते औरत मरदा साजे ये सब रूप तुमारे ।
कबीर गूंगरा राम अलह का सब गुरु पीर हमारे ।।
कहत कबीर सुनहु नर नरवै परहु एक की सरना ।
केवल नाम जपहु रे प्रानी तबही निहचै तरमा ॥९।।
अवतरि आइ कहा तुम कीना । राम को नाम न कबहूँ लीना ।।
राम न जपहु कवन मति लागे । मरि जैबे कौ क्या करहु अभागे।।
दुख सुख करिकै कुटेब जिवाया । मरती बार इकसर दुख पाया ।।
कंठ गहन तब कर न पुकारा ।कहि कबीर आगे ते न समारा॥१०॥
अवर मुये क्या सोग करीजै । तौ कीजै जौ आपन जीजै ॥
मैं न मरों मरिबो संसारा । अब मोहि मिल्यो है जियावनहारा ॥
या देही परमल महकंदा । ता सुख बिसरे परमानंदा ।।