पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/१११

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( १०५ ) जल में बसे कमोदिनी चंदा वसै अकास । जो है जाको भावता सो ताही के पास ॥१२५।। प्रीतम को पतियाँ लिखू जो कहुँ होय विदेस । तन में मन में नैन में ताको कहा सँदेस ॥१२६।। अगिनि आँच सहना सुगम सुगम खड़ग कीधार। नेह निभावन एकरस महा कठिन व्योहार ॥१२७॥ नेह निभाए ही वनै सोचै वनै न आन । तन दे मन दे सीस दे नेह न दीजै जान ॥१२८।। काँच कथीर अधीर नर ताहि न उपजै प्रेम । कह कवीर कसनी सहै के हीरा के हेम ॥१२९।। कसत कसौटी जो टिकै ताको शब्द सुनाय । सोई हमरा बंस है कह कवीर समुझाय ।।१३०॥ स्मरण दुख में सुमिरन सब करै सुख में करै न कोय । जो सुख में सुमिरन करै तो दुख काहे होय ॥१३॥ सुख में सुमिरन ना किया दुख में कीया याद । कह कवीर ता दास की कौन सुनै फिरियाद ॥१३२॥ सुमिरन की सुधि यों करौ जैसे कामी काम । एक पलक विसरै नहीं निस दिन बाठो जाम ||१३३।। सुमिरन सों मन लाइए जैसे नाद कुरंग। . कह कवीर विसरै नहीं प्राण तजै तेहि संग ॥१३॥ सुमिरन सुरत लगाइके मुख ते कळू न वोल । वाहर के पट देइ के अंतर के पट खोल ॥१३५।। माला फेरत जुग भया फिरा न.मन का फेर । कर का मनका डारि दे मन का मनका फेर ॥१३॥ ।।