पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/१६३

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वुरा जो देखन में चला बुरा न मिलिया कोय । जो दिल खोजों आपना मुझ सा बुरा न होय ||५९४॥ मेरा मुझ में कुछ नहीं जो कछु है सो तोर । तेरा तुझ को सौंपते क्या लागेगा मोर ।।५९५॥ लघुता ते प्रभुता मिलै प्रभुता ते प्रभु दूरि। चींटी लै शक्कर चली हाथी के सिर धूरि ॥५९६।। दया दया भाव हिरदे नहीं ज्ञान कथै वेहह । ते नर नरकहिं जाहिंगे सुनि सुनि साखी सन्द ।।५९७।। दया कौन पर कीजिए कापर निर्दय होय । साँई के सब जीव हैं कीरी कुंजर दोय ॥५९८।। सत्यता साँच वरावर तप नहीं झूठ वरावर पाप । जाके हिरदे साँच है ता हिरदे गुरु आप||५९९।। साँई से साँचा रही साँई: साँच सुहाय । भाँव लंबे केस रख भाँचे घोट मुंडाय ॥६००। साँचे नाप न लागई साँचे काल न खाय । साँचे को साँचा मिलै साँचे माँहि समाय ॥६०१॥ साँच विना सुमिरन नहीं भय विन भक्तिन होय। पारस में परदा रहै कंचन केहि विधि होय ।।६०२॥ प्रेम प्रीति का चालना पहिरि कवीरा नाच । . तन मन तापर वार हूँ जो कोई बोले साँच ॥६०३॥ साँचे कोइ न. पतीजई झूठे जग .पतियाय । गली गली :गोरस फिरै मदिरा वैठि विकाय ।।६०४॥