पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/१९८

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( १८० ) दसवे द्वारे ताड़ी लागी अलख पुरुष जाको ध्यान धरै। काल कराल निकट नहिं आवै काम क्रोध मद लोभ जरै।। सुगुन जुगुन की तृपा बुझानी करम भरम अघ व्याधि टरै। कहें कवीर सुनो भाई साधो अमर होय कवहूँ न मरै ॥२६॥ मोको कहाँ हूँढ़ो वंदे मैं तो तेरे पास में। ना मैं बकरी ना मैं भेडी ना मैं छुरी गँडास में । नहीं खाल में नहीं पोंछ में ना हड्डी ना मास में ॥ ना मैं देवल ना मैं मसजिद ना कावे कैलास में ।। ना तो कौनो क्रिया कर्म में नहीं जोग वैराग में। खोजी होय तुरते मिलिहों पल भर की तलास में । में तो रहीं सहर के बाहर मेरी पुरी मवास में । कहें कवीर सुनो भाई साधो सव साँसों की साँस में ॥२७॥ कती-प्राप्ति-साधन शान का गेंद कर सुरति का दंड कर खेल चौगान मैदान माहीं। जगत का भरमना छोड़ दे वालके श्राय जा भेख भगवंत पाहीं॥ भेख भगवंत की सेस महिमा करे सेस के सीस पर चरन डारें। कामदल जीति के कँवल दल सोधि के ब्रह्म को वेधि के क्रोध मारे ॥ पदम श्रासन करें पवन परिचं करें गगन के पहल पर मदन जार। कहत कबीर कोद संतजन जोहरी करम की रेख पर मेख मारे ।।२८।।