पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२०४

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( १८६ ) कहै कबीर कोउ पार पावै नहीं राम को नाम है अकह कहानी ॥३३॥ रसना राम गुण रमि रमि पीजै । गुणातीत निर्मूलक लीजै। निरगुन ब्रह्म जपो रे भाई । जेहि सुमिरत सुधिबुधि सब पाई ।। विख तजि राम न जपसि अभागे । का वूड़े लालच के आगे। ते सब तरे राम रसस्वादी । कह कवीर वूड़े वकवादी ॥३४॥ मन रे जव ते राम कह्यो रे । फिरि कहिवे को कछु न रह्यो रे। का भो जोग जज्ञ जप दाना । जो ते राम नाम नहिं जाना ।। काम क्रोध दोउ भारे । गुरु प्रसाद सब तारे। कह कवीर भ्रमनाशी । राम मिले अविनाशी ।।३५।।। राम का नाम संसार में सार है राम का नाम अमृत वानी। राम के नाम ते कोटि पातक टरै राम का नाम विस्वास मानी ।। राम का नाम ले साधु मुमिरन करे राम का नाम ले भक्ति ठानी । राम का नाम ले सूर सनमुख लर पैटि संग्राम में युद्ध ठानी ।। राम का नाम ले नारि सत्ती भई वह पनि कंत सँग जरि उड़ानी । राम का नाम ले तीर्थ सब भरमिया करत अस्नान झकझोर पानी ।। राम का नाम ले मूर्तिपूजा करें राम का नाम ले देत दानी । राम का नाम ले विप्र भिन्दुक बने गम का नाम. दुर्लम्म जानी ।।