पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२२६

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( २०८ ) जो तुम वाम्हन वाम्हनि जाए। और राह तुम काहे न आए ।' जो तू तुरुक तुरुकिनी जाया। पेटै काहे न सुनति कराया ।। कारी पीरी दूही गाई । ताकर दूध देहु बिलगाई। छाँडु कपट नर अधिक सयानी। कह कवीर भजु सारंगपानी॥२०॥ दुइ जगदीश कहाँ ते आए कहुँ कौने भरमाया। अल्ला राम करिम केशव हरि हजरत नाम धराया ।। . । गहना एक कनक ते गहना तामें भाव न दूजा। कहन सुनन को दुइ कर थाते एक नेवाज एक पूजा ।। वही महादेव वही मुहम्मद ब्रह्मा आदम कहिए । कोइ हिंदू कोई तुरुक कहावै एक जमीं पर रहिए ।। वेद किताब पढ़े वे कुतबा वे मौलना वे पाँड़े। विगत विगत कै नाम धरायो एक माटी के भाँड़े। कह कवीर ते दोनों भूलें रामह किनहु न पाया । वे खसिया वे गाय कटावें वादै जन्म गँवाया ।।९।। ऐसो भरम बिगुरचन भारी। बेद किताब दीन औ दोजख को पुरुषा को नारी ।। माटी के घर साज बनाया नादे विंदु समाना । घट बिनसे क्या नाम धरहुगे अहमक खोज भुलाना ॥ एकै हाड़ त्वचा मल मूत्रा रुधिर गुदा एक मुद्रा। एक बिंदु ते सृष्टि रच्यो है को ब्राह्मण को शूद्रा॥ रजगुण ब्रह्म तमोगुण शंकर सतोगुणी हरि सोई । कहै कबीर राम रमि रहिया हिदू तुरुक न कोई ।।९।। भक्ति-उद्रेक ओढ़न मेरो राम नाम मैं रामहिं को वनिजारा हो। . राम नाम को करौं वनिज मैं हरि मोरा हटवारा हो ॥ .