पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२२७

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( २०९ ) सहस नाम को करौं पसारा दिन दिन होत सवाई हो। .. कान तराजू सेर तिनपौवा उहकिन ढोल बजाई हो ॥ : सेर पसेरी पूरा कर ले पासँघ कतहुँ न जाई हो । कहें कवीर सुनो हो संतो जोर चले जहँड़ाई हो ।।९३५ तोको पीच मिलेंगे यूँघट को पट खोल रे। घट घट में वह साँई रमता कटुक वचन मत बोल रे ॥ धन जोवन के गरव न कीजै झूठा पँचरँग चोल रे। सुन्न महल में दियना वारि ले आसा सों मत डोल रे ।। जाग जुगुत से रंग महल में पिय पायो अनमोल रे । कहैं, कवीर अनंद भयो है वाजत अनहद ढोल रे ॥९॥ पायो सतनाम गरै कै हरवा । साँकर खटोलना रहनि हमारी दुवरे दुवरे पाँच कँहरवा । ताला कुंजी हमें गुरु दीन्ही जब चाहाँ तव खोली किवरवा ।। प्रेम प्रीति की चुनरी हमारी जव चाहौं तव नाचों सहरवा । कहैं कवीर सुनो भाई साधो वहुर न ऐवै एही नगरवा ॥९५।। मिलना कठिन है, कैसे मिलांगी पिय जाय । .' समुझि सोच पग धरौं जतन से बार वार डिग'जाय ।। ऊँची गैल · राह' रपटीली पाँव नहीं : ठहराय । लोक-लाज कुल की मरजादा देखत 'मन सकुचाय ।। नैहर वास वसा पीहर में लाज तजी नहिं जाय । अधर भूमि जहँ महल पिया का हम पै चढ़ो न जाय ॥ धन भई वारी पुरुख भए भोला सुरत भकोरा खाय । दूती सतगुरु मिले वीच में दीन्हों भेद वताय । साहव कविरा पिया से भेंट्यो सीतल कंठ लगाय ॥९॥ दुलहिन गावो मंगलचार । हमरे घर आए राम भतार । . तन रति कर मैं मन रति करिहों पाँचो तत्त्व वराती। . रामदेव मोहिं ब्याहन आए मैं जोवन मदमाती। , .