पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( २२१ ) जारे देह भसम है जाई गाड़े मारी खाई। सूकर स्वान काग के भोजन तन की यह वड़ाई ॥ चेति न देखु मुगुध नर चौरे तोते काल न दूरी। कोटिन जतन करै वहुतेरे तन कि अवस्था धूरी॥ वालू के घरवा में बैठे चेतत नाहिं अयाना । कह कवीर एक राम भजे विन बूड़े बहुत सयाना ॥१३३॥ फिरह का फूले फूले फूले । जो दस मास उरध मुख झूले सो दिन काहे भूले । ज्यों माखी स्वादै लहि विहरै सोचि सोचि धन कीन्हा । त्यौं ही पीछे लेहु लेहु करि भूत रहनि कछु दीन्हा । देहरी लौं वर नार संग है आगे संग सहेला । मृतक थान संग दियो खटोला फिरि पुनि हंस अकेला ॥ जारे देह भसम है जाई गाड़े माटी खाई । काँचे कुंभ उदक ज्यों भरिया तन की इहै बड़ाई ॥ राम न रमसि मोह में माते परयो काल वस कूवा । कह कवीर नर आप वधायो ज्यों नलिनी भ्रम सूवा ॥१३४॥ अल्लह राम जीव तेरी नाई। जन पर मेहर करहु तुम साई॥ क्या मूंड़ो भीमहि सिर नाए क्या जल देह नहाए । खून करै मसकीन कहावै गुन को रहै छिपाए ॥ क्या भो उज्जू मजन कीने क्या मसजिद सिर नाए । हृदये कपट नेवाज गुजारे का भी मक्का जाए । हिंदू एकादशि चौविस रोजा मुसलिम तीस वनाए । ' वारह मास कहो क्यों टारो ये केहि माह समाए । पूरव दिसि में हरि को वासा, पच्छिम अलह मुकामा । दिल में खोज दिले में देखो यहै करीमा रामा ।। जो खोदाय मसजिद में वसतु है और मुलुक केहि केरा। . तीरथ मूरत राम निवासी दुइ महँ किन हुँ न हेरा-॥ ।