पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२५२

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( २३२ ) मन के बैल सुरत हरवाहा जोत खेत निरवानी। दुविधा दूव छोल कर बाहर चोव नाम की घानी ॥ जोग जुगुत करि कर रखवारीचरन जाय मृगधानी। वाली भार कूट घर लायै सोई कुसल किसानी ।। पाँच सखी मिल कीन रसोइया एक से एक सयानी । दूनों थार वरावर परसे जे. मुनि अरु ज्ञानी ।। कहत कबीर सुनो भाई साधो यह पद है निरवानी । जो या पद को परिचे पावे ताको नाम विज्ञानी ॥१६५।। सकुच और शिक्षा नैहर में दाग लगाय आई चुनरी। ऊ रंगरेजवा के मरम न जाने नहिं मिलै धोविया कवन करै उजरी। तन के कड़ी शान के सउँदन सावुन महंग विकाय या नगरी । पहिरि प्रोदि के चली ससुररिया गांव के लोग कई बड़ी गहरी । कहत कबीर मुनो भाई साधो विन सतगुरु कब ? नहि सुधरी ।। १६६॥ - मोरी चुनरी में परि गयो दाग पिया।। पाँच तत्त के बनी चुनरिया लोरह से बँद लागे जिया । यह चुनरी मारे मैके ते प्राई समुरे में मनुया खोय दिया । मलि मलि धाई दाग न कुटे शान को सावुन लाय पिया । कहत कबीर दाग तय छुटि है जय साहव अपनाय लिया ।।६। पिया ऊँची रे अटरिया, तारी देखन चली। ऊँची अदारिया जगढ़ किनरिया लगी नाम की डोरिया । चाँद सुरज मम दियना बगनु है ना विच भूली दारिया ।। पाँच पाल नीन घर बनिया मनुाँ है चौधरिया । मुंगी, कोनवाल मान को च? दिसि लगी बजरिया ।।