पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/२५४

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( २३४ ) कह कवीर मुन साइयाँ मोर याहिय देस । जो गए सो वहुरे ना, को कहत सँदेस ॥१७॥ कौन रँगरेजवा रंगे मोर चुंदरी। पाँच तत्त के वनी चुंदरिया चुंदरी पहिरि के लगे बड़ी सुंदरी। टेकुवा तागा करम के धागा गरे विच हरवा हाथ विच मुंदरी । सोरहो निगार वतीसो अभरन पिय पिय रटत पिया सँग घुमरी । कहत कवीर सुनो भाइ साधोविन सतसंग कवन विधि सुधरी ।१७२। य अंखियाँ अलसानो, पिय हो सेज चलो। खंभा पकरि पतंगअस डोले बोले मधुरी बानी । फूलन सेज विद्याइ जो राख्यो पिया विना कुम्हलानी ।। धीर पाँच घरा पलँगा पर जागत ननद जिठानी। कहत कबीर सुनो भाई साधा लोक लाज विछलानी॥१७३॥ जागु पियारी अव का सोचे । रेन गई दिन काहे को बाय ।। जिन जागा तिन मानिक पाया। ने चोरी सब साय गँवाया ।। पिय तेरे चतुर तु मूरख नारी । कबहुँ न पिय की संज मँवारी॥ नै बारी बारापन कीन्हा । भर जावन पिय अपन न चीन्हा।। जाग देख पिय सेज न तेर। तेहि छाँड़ि उठ गए सवेरे ॥ कर कबीर साई धुन जागे शब्द वान उर अंतर लागे ॥१७॥ आया दिन गाने के हा मन हात दुलाम । पांच भीट के पाग्वग हो जाम दल द्वार ॥ पाँच नम्वी बग्नि भई हा, कम उतरख पार । हॉट मोट दालिया चंदन के हो लागे चार कहार॥ पानिया उनारे बीच वनवाँ हो, जह कारन हमारः । परयां नारी लागा कारवाहदोली धर दिन वार॥ मिरालय नचिया मालरा, मिलां कुल परिवार । माय कीर गाय निरगुना, माथा फरिमा विचार गरम गरम मादा कागि नाही, आगे हाट न बजार ॥१७॥