पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/८८

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भारत ने कुछ भी नहीं छोड़ा, सदको ग्रहण करके अपना वना लिया ।"

-सरस्वती भाग १५, खंड १, सं०६, पृ० ३०९ यही तो तत्वज्ञता है, यही तो धार्मिकता है। कवीर साहव किसी मुल्ला को मसजिद में वाँग देते देखते हैं, तो कहते हैं-

काकर पाथर जोरि के मसजिद लई चुनाय ।

ता चढ़ि मुल्ला वाँग दे क्या बहिरा हुआ खोदाय ॥ परंतु क्या मुल्ला के वाँग देने का यही अभिप्राय है कि वह समझता है कि खुदा विना गला फाड़कर चिल्लाए उसकी प्रार्थनाओं को न सुनेगा? यह तो उसका अभिप्राय नहीं है। उसकी बाँग का तो केवल इतना ही अर्थ है कि वह वाँग द्वारा अपने सहधर्मियों को ईश्वरोपासना का समय हो जाने की सूचना देता है, और उनको ईश्वर की आराधना के लिये सावधान करता है। फिर उसपर यह व्यंग करना कि क्या खुदा बहरा है जो वह यों चिल्लाता है, कितना असंगत है।

परमहंस रामकृष्ण का पवित्र नाम भारत में प्रसिद्ध है। श्राप उन्नीसवीं शताब्दी के भारत-भूमि के आदर्श महात्मा थे। सुविख्यात विद्वान् और दार्शनिक श्रीयुत मैक्समूलर ने एक स्थान पर कहा है-“यदि कहीं एकाधारा में शान और भक्ति का समान रूप से विकास दृष्टिगत हुया, तो परम- हंस रामकृष्ण में' । पेसे महापुरुप पर बाँग का अद्भुत प्रभाव हाता था। जब कभी इस महान्मा के कानों में, पवित्र गिरिजा. घरां के उपासना-कालिक घंटा की लहर, या पुनीत मंदिरों में यनित गां का निनाद, या पाक मसजिद से उटी मुला की याँग पढ़ती, तो इस प्रबलता से उनकदय में भत्ति का