पृष्ठ:कबीर वचनावली.djvu/९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पढ़िए । देखिए, उनमें विचार की कितनी प्रौढ़ता है। विना पूर्णतया उस सिद्धांत पर आरूढ़ हुए विचार में इतनी प्रौढ़ता श्रा नहीं सकती । प्रोफेसर वी० वी० राय लिखते हैं- ____ "कवीरपंथियों की मुख्तलिफ कितावों से और आदि ग्रंथ में जो कवीर की बातों का इक्तिवास है, उन से साफ जाहिर होता है कि कबीरपंथी तालीम वेदांती तालीम की एक दूसरी सूरत है। इस अम्र में सूफियों से भी उनको बड़ी मदद मिला, क्योंकि दोनों तालीम करीब करीब एक सी हैं।" -संप्रदाय, पृष्ठ ६९ वैष्णव और वेदांत धर्म दोनों प्रकांड वैदिक धर्म अर्थात् हिंदू धर्म की विशाल शाखाएँ हैं। यह वही उदार और महान् धर्म है कि जिससे वसुंधरा के समग्र पुनीत ग्रंथों ने कतिपय व्यापक सार्वभौम सिद्धांत का संग्रह करके अपने अपने कलेबर को समुज्वल किया है। कबीर साहब चाहे वैष्णव हों या वेदांती, चाहं संत मत कं हो, चाहे अपने को और कुछ बतलावें, किंतु वे भी उसी धर्म के ऋणी है। और उसी के आलोक से उन्होंने अपना प्रदीप प्रज्वलित किया । शेप वक्तव्य श्रीयुत मैक्समूलर जैसे असाधारण विदेशी विद्वान बार धामनी पनीयसंट जैसी परम विदर्यी विजातीय महिला ने भी इस बात को स्वांकार किया है कि हिंदू धर्म के सिद्धांत यान ही उदार, व्यापक और सर्व-देशदनी ।। वास्तव में जैसे ही हिंदू धर्म के निदान महान, और गंभीर , यर ही पूर्ण मार्वभौम भार माजनिक भी। मंपिक