और उन टुकड़ों को आग में जला डाले तो भी मैं मुस्लिम को आपके हवाले न करूँगा। मुरौवत इसे कभी क़बूल नहीं करती कि अपनी पनाह में अानेवाले आदमी को दुश्मन के हवाले किया जायं। यह शराफ़त के खिलाफ़ है। अरब की आन के ख़िलाफ़ है। अगर मैं ऐसा करूँ, तो अपनी ही निगाह में गिर जाऊँगा। मेरे मुँह पर हमेशा के लिए स्याही का दाग़ लग जायगा। और, आनेवाली नस्लें मेरे नाम पर लानत करेंगी।
क़ीस---( हानी को किनारे ले जाकर ) हानी, सोचो, इसका अंजाम क्या होगा? तुम पर, तुम्हारे खानदान पर, तुम्हारे क़बीले पर अाफ़त आ जायगी। इतने आदमियों को क़ुरबान करके एक आदमी की जान बचाना कहाँ की दानाई है?
हानी---क्रीस, तुम्हारे मुँह से ये बातें ज़ेबा नहीं। मैं हुसैन के चचेरे भाई के साथ कभी दग़ा न करूँगा, चाहे मेरा सारा ख़ानदान क़त्ल कर दिया जाय।
ज़ियाद----शायद तुम अपनी ज़िन्दगी से वेज़ार हो गये हो।
हानी---आप मुझे अपने मकान पर बुलाकर मुझे क़त्ल की धमकी दे रहे हैं। मैं कहता हूँ कि मेरा एक क़तरा खून इस आलीशान इमारत को हिला देगा। हानी बेकस, बेज़ार और बेमददगार नहीं है।
ज़ियाद---( हानी के मुँह पर सौटे से मारकर ) ख़लीफफ़ा का नायब किसी के मुँह से अपनी तौहीन न सुनेगा, चाहे वह दस हज़ार क़बीले का सरदार क्यों न हो।
हानी---( नाक से ख़ून पोंछते हुए ) ज़ालिम! तुझे शर्म नहीं आती कि तू एक निहत्थे अादमी पर वार कर रहा है। काश मैं जानता कि तू दग़ा करेगा, तो तू यों न बैठा रहता।
सुले०---ज़ियाद! मै तुम्हें ख़बरदार किये देता हूँ कि अगर हानी को क़ैद किया, तो तू भी सलामत न बचेगा।
[ ज़ियाद सुलेमान को मारने उठता है, लेकिन हज्जाज उसे रोक लेता है। ]
ज़ियाद---तुम लोग बैठे मुँह क्या ताक रहे हो, पकड़ लो इस बुड्ढे को।