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पृष्ठ:कर्बला.djvu/१०७

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कर्बला

[ बाहर की तरफ़ शोर मचता है। ]

यह शोर कैसा है?

क़ीस---( खिड़की से बाहर की तरफ़ झाँककर ) बाग़ियों की एक फ़ौज इस तरफ़ बढ़ती चली आ रही है।

ज़ियाद---कितने आदमी होंगे?

क़ीस---क़सम खुदा की, दस हज़ार से कम नहीं हैं।

ज़ियाद---( सिपाही को बुलाकर ) हानी को ले जाओ और उस कोठरी में बंद कर दो, जहाँ कभी आफ़ताब की किरणें नहीं पहुँचतीं।

सुले०---ज़ियाद, मैं तुझे खबरदार किये देता हूँ, कि तुझे ख़ुद न उसी कोठरी में क़ैद होना पड़े।

[ सुलेमान और मुख़तार बाहर चले जाते हैं। ]

क़ीस---बागियों की एक फ़ौज बड़ी तेज़ी से बढ़ती चली आ रही है। बीस हज़ार से कम न होगी। मुस्लिम झंडा लिये हुए सबके आगे हैं।

ज़ियाद---दरवाज़े बन्द कर लो। अपनी-अपनी तलवारें लेकर तैयार हो जाओ। क़सम ख़ुदा की, मैं इस बग़ावत का मुक़ाबला ज़बान से करूँगा। ( छत पर चढ़कर बागियों से पूछता है ) तुम लोग क्यों शोर मचाते हो?

एक आ०---हम तुझसे हानी के ख़ून का बदला लेने आये है।

ज़ियाद---क़लाम पाक की क़सम, जीते-जागते आदमी के ख़ून का बदला आज तक कभी किसी ने न लिया। अगर मैं झूठा हूँ, तो तुम्हारे शहर का काज़ी तो झूठ न बोलेगा। ( क़ाज़ी नीचे से बुलाकर ) बाग़ियों से कह दो, हानी ज़िन्दा है।

क़ाज़ी---या अमीर! मैं हानी को जब तक अपनी आँखों से न देख लूँ, मेरी ज़बान से यह तसदीक़ न होगी।

ज़ियाद---क़लाम पाक की कसम, मैं तमाम मुल्लाओं को वासिल जहन्नुम कर दूँगा। जा देख आ, जल्दी कर।

[ काज़ी नीचे जाता है, और क्षण-भर में लौट आता है। ]

क़ाज़ी---ऐ कूफ़ा के बाशिन्दो! मैं ईमान की रू से तसदीक़ करता हूँ कि शेख हानी ज़िन्दा हैं। हाँ, उनकी नाक से ख़ून जारी है।