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पृष्ठ:कर्बला.djvu/११९

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कर्बला

देनी चाहिए। ग़ैरतमन्दों के लिए रूहानी ज़िल्लत क़त्ल से कहीं ज़्यादा तकलीफ़ देती है। खैर, अब हानी को ले जा, और चौराहे पर क़त्ल कर डाल।

एक आ॰---खुदावन्द, यह ख़िदमत मुझे सुपुर्द हो।

ज़ियाद॰---तू कौन है?

आ॰---हानी का ग़ुलाम हूँ। मुझ पर उसने इतने ज़ुल्म किये हैं कि मैं उसके खून का प्यासा हो गया हूँ। आपकी निगाह हो जाय, तो मेरी पुरानी अारज़ू पूरी हो। मैं इस तरह क़त्ल करूँगा कि देखनेवाले आँखें बन्द कर लेंगे।

ज़ियाद---कलाम पाक की क़सम, तेरा सवाल ज़रूर पूरा करूँगा।

[ गुलाम हानी को पकड़े हुए ले जाता है। कई सिपाही तलवारें लिये साथ-साथ जाते हैं। ]

ग़ुलाम---( हानी से ) मेरे प्यारे आक़ा, मैंने ज़िन्दगी-भर अापका नमक खाया, कितनी ही ख़ताएँ की, पर आपने कभी कड़ी निगाहों से नहीं देखा। अब आपके जिस्म पर किसी बेदर्द क़ातिल का हाथ पड़े, यह मैं नहीं देख सकता। मैं इस हालात में भी आपकी ख़िदमत करना चाहता हूँ। मैं आपकी रूह को इस जिस्म की क़ैद से इस तरह आज़ाद करूँगा कि ज़रा भी तकलीफ़ न हो। खुदा आपको जन्नत दे, और ख़ता माफ़ करे।