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पृष्ठ:कर्बला.djvu/१३६

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कर्बला

अब्बास---मेरी सलाह तो है कि दरिया के किनारे लगें।

हुसैन---नहीं भैया, दुश्मन हमें दरिया के किनारे न उतरने देंगे। इसी मैदान में ख़ेमे लगाओ, खुदा यहाँ भी है, और वहाँ भी। उसकी मर्जी पूरी होकर रहेगी।

[ जैनब को औरतें उठाकर खेमे में ले जाती हैं। ]

बानू---हाय-हाय! बाजीजान को क्या हो गया। या खुदा, हम मुसीबत के मारे हुए हैं, हमारे हाल पर रहम कर!

हुसैन---बानू, यह मेरी बहन नहीं, मा है। अगर इस्लाम में बुतपरस्ती हराम न होती, तो मैं इसकी इबादत करता। यह मेरे ख़ानदान का रोशन सितारा है। मुझ-सा खुशनसीब भाई दुनिया में और कौन होगा, जिसे ख़ुदा ने ऐसी बहन अता की। ( जैनब के मुँह पर पानी के छींटे देते हैं। )


सातवाँ दृश्य

[ नसीमा अपने कमरे में अकेली बैठी हुई है---समय १२ बजे रात का। ]

नसीमा---( दिल में ) वह अब तक नहीं आये। गुलाम को उन्हें साथ लाने के लिए भेजा, वह भी वहीं का हो रहा। ख़ुदा करे, वह आते हों। दुनिया में होते हुए हमारे ऊपर मुल्क की हालत का असर न पड़े। मुहल्ले में आग लगी हो, तो अपना दरवाज़ा बन्द करके बैठ रहना खतरे से नहीं बचा सकता। मैंने अपने तई इन झगड़ों से कितना बचाया था, यहाँ तक कि अब्बाजान और अम्मा जब यज़ीद की बैयत न क़बूल करने के जुर्म में जला-वतन कर दिये गये, तब भी मैं अपना दरवाज़ा बन्द किये बैठी रही, पर कोई तदबीर कारगर न हुई। बैयत की बला फिर गले पड़ी। वहब मेरे लिए सब कुछ करने को तैयार है। वह यज़ीद की बैयत भी कबूल कर लेता, चाहे उसके दिल को कितना ही सदमा हो। पर जो कुछ हो रहा है, उसे देखकर अब मेरा दिल भी यज़ीद की बैयत की तरफ मायल नहीं होता, उससे नफ़रत होती है। मुस्लिम कितनी बेदरदी से क़त्ल किये गये, हानी को