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पृष्ठ:कर्बला.djvu/१४४

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कर्बला

यार-दोस्त मुझे मुबारकबाद दे चुके। अब जो मुझसे फ़रमान ले लिया जायगा, तो लोग दिल में क्या कहेंगे?

ज़ियाद---यह सवाल तो तुम्हें अपने दिल से पूछना चाहिए।

साद---या अमीर, मुझे कुछ और मुहलत दीजिए।

ज़ियाद---तुम इस तरह टाल-मटोल करके देर करना चाहते हो। कलाम पाक की क़सम है, अब मैं तुम्हारे साथ ज़्यादा सख्ती से पेश आऊँगा। अगर शाम को हुसैन से जंग करने के लिए तैयार होकर न आये, तो तेरी जायदाद ज़ब्त कर लूँगा, तेरा घर लुटवा दूँगा, यह मकान पामाल हो जायगा, और तेरी जान की भो ख़ैरियत नहीं ( ज़ियाद का प्रस्थान )।

साद---( दिल में ) मालूम होता है, मेरी तक़दीर में रूस्याह होना ही लिखा है। अब महज़ 'रै' की निज़ामत का सवाल नहीं है। अब अपनी जायदाद और जान का सवाल है। इस ज़ालिम ने हानी को कितनी बेरहमी से क़त्ल किया। कसीर को भी अपनी अईनपरवरी की गिराँ क़ीमत देनी पड़ी। शहरवालों ने ज़बान तक न हिलायी। वह तो महज़ हुसैन के अजीज़ थे। यह मामला उससे कहीं नाजुक है। ज़ियाद बरहम हो जायगा, तो जो कुछ न कर गुजरे, वह थोड़ा हैं। मैं 'रै' को ईमान पर क़ुरबान कर सकता हूँ, पर जान और जायदाद को नहीं क़ुरबान कर सकता। काश मुझमें हानी और कसीर की-सी हिम्मत होती।

[ शिमर का प्रवेश। ]

शिमर---अस्सलामअलेक। साद, किस फ़िक्र में बैठे हो, ज़ियाद को तुमने क्या जवाब दिया?

साद---दिल हुसैन के मुक़ाबले पर राजी नहीं होता।

शिमर---सरवत और दौलत हासिल करने का ऐसा सुनहरा मौक़ा फिर हाथ न आयेगा। ऐसे मौक़े जिन्दगी में बार-बार नहीं आते।

साद---नजात कैसे होगी?

शिमर---ख़ुदा रहीम है, करीम है, उसकी ज़ात से कुछ वईद नहीं। गुनाहों को माफ़ न करता, तो रहीम क्यों कहलाता? हम गुनाह न करें, तो वह माफ क्या करेगा?