सबके लिए ख़ुदा से दुआ करता हूँ। मुझे इसका फ्रख़ है कि उसने मुझे ऐसे सआदतमंद अज़ीज़ और ऐसे जाँनिसार दोस्त अता किये आपने दोस्ती का हक़ पूरी तरह अदा कर दिया, आपने साबित कर दिया कि हक़ के सामने आप जान और माल की कोई हक़ीक़त नहीं समझते। इस्लाम की तारीख़ में आपका नाम हमेशा रोशन रहेगा। मेरा दिल इस ख़याल से पाश-पाश हुअा जाता है कि कल मेरे बायस वे लोग, जिन्हें ज़िन्दा हिम्मत चाहिए, जिनका हक़ है ज़िन्दा रहना, जिनको अभी ज़िन्दगी में बहुत कुछ करना बाकी है, शहीद हो जायँगे। मुझे सच्ची खुशी होगी, अगर तुम लोग मेरे दिल का यह बोझ हल्का कर दोगे। मैं बड़ी खुशी से हरएक को इजाज़त देता हूँ कि उसका जहाँ जी चाहे, चला जाय। मेरा किसी पर कोई हक़ नहीं है। नहीं, मैं तुमसे इल्तमास करता हूँ, इसे क़बूल करो। तुमसे किसी की दुश्मनी नहीं हुई है, जहाँ जाओगे, लोग तुम्हारी इज़्ज़त करेंगे। तुम ज़िन्दा शहीद हो जाओगे, जो मरकर शहादत का दर्जा पाने से इज़्ज़त की बात नहीं। दुश्मन को सिर्फ़ मेरे खून की प्यास है, मैं ही उसके रास्ते का पत्थर हूँ। अगर हक़ और इन्साफ को सिर्फ़ मेरे ख़ून से आसूदगी हो जाय, तो उसके लिए और खून क्यों बहाया जाय? साद से एक शब की मुहलत माँगने में यही मेरा खयाल था। यह देखो, मैं यह शमा ठंढी किये देता हूँ, जिसमें किसी की हिजाब न हो।
[ सब लोग रोने लगते हैं, और कोई अपनी जगह से नहीं हिलता। ]
अब्बास---या हज़रत, अगर आप हमें मारकर भगायें तो भी हम नहीं जा सकते। खुदा वह दिन न दिखाये कि हम आपसे जुदा हों। आपकी शफ़क़त के साये में पल-कर अब हम सोच ही नहीं सकते कि आपके बग़ैर हम क्या करेंगे, कैसे रहेंगे।
अली अकबर---अब्बाजान, यह आप क्या फ़रमाते हैं? हम आपके क़दमों पर निसार होने के लिए आये हैं। आपको यहाँ तनहा छोड़कर जाना तो क्या, महज उसके खयाल से रूह को नफ़रत होती है।
हबीब---खुदा की क़सम, आपको उस वक्त तक नहीं छोड़ सकते, जब