सफ़वान---हम सिपाहियों को माल, दौलत, जागीर और रुतबा चाहिए, हमें दीन और आक़बत से क्या काम? सँभल जाओ।
[ दोनो पहलवानों में चोटें चलने लगती हैं। ]
अब्बास---वह मारा। सफ़वान का सीना टूट गया, ज़मीन पर तड़पने लगा।
हबीब---सफ़वान के तीनों भाई दौड़े चले आते हैं।
अब्बास---वाह मेरे शेर! एक को तलवार से लिया, दूसरा भी गिरा, और तीसरा भागा जाता है।
हबीब---या ख़ुदा, खैर कर, हुर का घोड़ा गिर गया।
हुसैन---फ़ौरन् एक घोड़ा भेजो।
[ एक आदमी हुर के पास घोड़ा लेकर जाता है। ]
अब्बास---यह पीरानासाली और यह दिलेरी! ऐसा बहादुर अाज तक नज़र से नहीं गुज़रा। तलवार बिजली की तरह कौंध रही है।
हुसैन---देखो, दुश्मन का लश्कर कैसा पीछे हटा जाता है। मरनेवाले के सामने खड़ा होना आसान नहीं है। दिलेरी की इन्तहा है।
अब्बास---अफ़सोस, अब हाथ नहीं उठते। तीरों से सारा बदन चलनी हो गया।
शिमर---तीरों की बारिश करो, मार लो। हैफ़ है तुम पर कि एक आदमी से इतने ख़ायफ़ हो। वह गिरा, काट लो सिर और हुसैन की फ़ौज में फेक दो।
[ कई आदमी हुर के सिर को काटने को चलते हैं कि हुसैन मैदान की तरफ दौड़ते हैं। ]
एक---वह हुसैन दौड़े चले आते हैं। भागो, नहीं तो जान न बचेगी।
हुसैन---( हुर की लाश से लिपटकर )
टुकड़े हैं बदन, ज़ख़्म बहुत खाये हैं भाई,
हो होश में आ लाश पै हम आये हैं भाई।
[ हुर आँखें खोलकर देखते हैं, और अपना सिर उनकी गोद में रख देते हैं। ]