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कर्बला

[ दरिया से पानी लेकर घाट पर चढ़ते हैं। ]

एक सिपाही---यह कौन पानी लिये जाता है?

अब्बास---( ख़ामोश )

कई आदमी---क्या कोई पानी ले रहा है? कौन है? खड़ा रह।

[ कई सिपाही अब्बास को घेर लेते हैं। ]

एक---यह तो हुसैन के लश्कर का आदमी है---क्यों जी, तुम्हारा क्या नाम है?

अब्बास---मैं हज़रत हुसैन का भाई अब्बास हूँ।

कई आदमी---छीन लो मशक।

अब्बास---इतना आसान न समझा। एक-एक बूँद पानी के लिए एक-एक सिर देना पड़ेगा। पानी इतना महँगा कभी न बिका होगा।

[ अब्बास तलवार खींचकर। दुश्मनों पर झपट पड़ते हैं, और उनके घेरे से निकाल जाने की कोशिश करते हैं। शिमर दौड़ा हुआ आता है। ]

शिमर---ख़बरदार, ख़बरदार, चारों तरफ से घेर लो, मशक में नेज़े मारो, मशक में।

अब्बास---अरे ज़ालिम, बेदर्द! तू मुसलमान होकर नबी की औलाद पर इतनी सख्तियाँ कर रहा है। बच्चे प्यासों तड़प रहे हैं, हज़रत हुसैन का बुरा हाल हो रहा है, अोर तुझे ज़रा भी दर्द नहीं आता।

शिमर---खलीफ़ा से बगावत करनेवाला मुसलमान मुसलमान नहीं, और न उसके साथ कोई रियायत की जा सकती है। दिलेरो, बस जंग का इसी दम खातमा है। अब्बास का लिया, फिर वहाँ हुसैन के सिवा और कोई बाकी न रहेगा।

[ सिपाही अब्बास पर नेज़े चलाते हैं, और अब्बास नेज़ों को तलवार से काट देते हैं। साद का प्रवेश। ]

साद---ठहरो-ठहरो! दुश्मन को दोस्त बना लेने में जितना फ़ायदा है, उतना कत्ल करने में नहीं। अब्बास, मैं आपसे कुछ अर्ज़ करना चाहता हूँ। एक दम के लिए तलवार रोक दीजिए। तनी हुई तलवार मसालहत की ज़बान बन्द कर देती है।