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पृष्ठ:कर्बला.djvu/१९१

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कर्बला

अब्बास---मसालहत की गुफ़्तगू अगर करनी है, तो हज़रत हुसैन के पास क्यों नहीं जाते। हालाँकि अब वह कुछ न सुनेंगे। दो भाँजे, दो भतीजे मारे जा चुके, कितने ही अहबाब शहीद हो चुके, वह खुद ज़िन्दगी से बेज़ार हैं, मरने पर कमर बाँध चुके हैं।

साद---तो ऐसी हालत में आपको अपनी जान की और भी क़द्र करनी चाहिए। दुनिया मे अली की कोई निशानी तो रहे। ख़ानदान का नाम तो न मिटे।

अब्बास---भाई के बाद जीना बेकार है।

साद---

माबेन लहद साथ बिरादर नहीं जाता,
भाई कोई भाई के लिए मर नहीं जाता।

अब्बास---

भाई के लिए जी से गुज़र जाता है भाई,
जाता है बिरादर भी, जिधर जाता है भाई।
क्या भाई हो तेग़ों में, तो डर जाता है भाई?
आँच पाती है भाई पै, तो मर जाता है भाई।

साद---आपसे तो खलीफा को कोई दुश्मनी नहीं, आप उनकी बैयत कबूल कर लें, तो आपकी हर तरह भलाई होगी। आप जो रुतबा चाहेंगे, वह आपको मिल जायगा, और आप हज़रत अली के जाँनशीन समझे जायँगे।

अब्बास---जब हुसैन-जैसे सुलहपसन्द आदमी ने---जिसने कभी ग़ुस्से को पास नहीं आने दिया, जिसने जंग पर कभी सबक़त नहीं की, जिसने आज भी मुझसे ताकीद कर दी कि राह न मिले, तो दरिया पर न जाना---तुम्हारी बात नहीं मानी, तो मैं, जो इन औसाफ़ में से एक भी नहीं रखता, क्योंकर तुम्हारी बातें मानूँगा।

साद---तुम्हें अख्तियार है।

शिमर---टूट पड़ो, टूट पड़ो!

[ एक सिपाही पीछे से आकर एक तलवार मारता है, जिससे अब्बास का दाहिना हाथ कट जाता है अब्बास बाये हाथ में तलवार ले लेते हैं। ]