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पृष्ठ:कर्बला.djvu/१९२

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कर्बला

शिमर---अभी एक हाथ बाकी है, जा उसे गिरा दे, उसे एक लाख दीनार इनाम मिलेगा।

[ चारो तरफ़ से ज़ख्मी सिपाहियों की आहें सुनायी दे रही हैं। अब्बास सफ़ों को चीरते, सिपाहियों को गिराते हुसैन के खेमे के सामने पहुँच जाते हैं। इतने में एक सिपाही तलवार से उनका बायाँ हाथ भी गिरा देता है। शिमर उनकी छाती में भाला चुभा देता है। अब्बास मशक को दाँतों से पकड़ लेते हैं। तब सिर पर एक गुर्ज पड़ता है, और अब्बास घोड़े से गिर पड़ते हैं। ]

अब्बास---(चिल्लाकर) भैया, तुम्हारा ग़ुलाम अब जाता है---उसका आखिरी सलाम क़बूल करो।

[ हुसैन खेमे से बाहर निकल दौड़ते हुए आते हैं, और अब्बास के पास पहुँचकर उन्हें गोद में उठा लेते हैं। ]

हुसैन---आह! मेरे प्यारे भाई, मेरे क़बूते-बाज़, तुम्हारी मौत ने कमर तोड़ दी। हाय! अब कोई सहारा नहीं रहा। तुम्हें अपने पहलू में देखते हुए मुझे वह भरोसा होता था, जो बच्चे को अपनी माँ की गोद में होता है। तुम मेरे पुश्तेपनाह थे। हाय! अब किसे देखकर दिल को ढाढ़स होगा। आह! अगर तुम्हें इतनी जल्द रुख़सत होना था, तो पहले मुझी को क्यों न मर जाने दिया? आह! अब तक मैंने तुम्हें इस तरह बचाया था, जैसे कोई आँधी में चिराग़ को बचाता है। पर क़ज़ा से कुछ बस न चला। हाय! मैं खुद क्यों न पानी लेने गया? हाय, अब खैर, भैया, इतनी तस्कीन है कि फिर हमसे-तुमसे जल्द मुलाक़ात होगी, और फिर हम क़यामत तक न जुदा होंगे।


छठा दृश्य

[ दोपहर का समय। हुसैन अपने खेमे में खड़े हैं, जैनब, कुलसूम, सकीना, शहरबानू, सब उन्हें घेरे हुए हैं। ]

हुसैन---जैनब, अब्बास के बाद अली अकबर से दिल को तस्कीन देता