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पृष्ठ:कर्बला.djvu/१९३

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कर्बला

था। अब किसे देखकर दिल को ढाढस दूँ? हाय! मेरा जवान बेटा प्यासों तड़प-तड़पकर मर गया! किस शान से मैदान की तरफ़ गया था। कितना हँसमुख, कितना हिम्मत का धनी! जैनब, मैंने उसे कभी उदास नहीं देखा, हमेशा मुस्कराता रहता था। ऐ आँखो! अगर रोयीं, तो तुम्हें निकालकर फेक दूँगा। खुदा की मर्ज़ी में रोना कैसा। मालूम होता है, सारी क़ुदरत मुझे तबाह करने पर तुली हुई है। यह धूप कि उसकी तरफ़ ताकने ही से आँखें जलने लगती हैं। यह जलता हुअा बालू, ये लू के झुलसानेवाले झोंके, और यह प्यास! यों ज़िन्दा जलना तीरों और भालों के ज़ख़्मों से कहीं ज्यादा सख़्त है।

[ अली असगर अाता है, और बेहोश होकर गिर पड़ता है। ]

शहरबानू---हाय, मेरे बच्चे को क्या हुअा!

हुसैन---( असग़र को गोद में उठाकर ) आह! यह फूल पानी के बग़ैर मुरझाया जा रहा है। खुदा, इस रंज में अगर मेरी ज़बान से तेरी शान में कोई बेअदबी हो जाय, तो माफ़ कीजियो, मैं अपने होश में नहीं हूँ। एक कटोरे पानी के लिए इस वक्त मैं जन्नत से हाथ धोने को तैयार हूँ। ( असग़र को गोद में लिये खेमे से बाहर आकर ) ऐ ज़ालिम क़ौ, अगर तुम्हारे ख़याल में मैं गुनहगार हूँ, तो इस बच्चे ने तो कोई ख़ता नहीं की है, इसे एक घूँट पानी पिला दो। मैं तुम्हारे नबी का नेवासा हूँ, अगर इसमें तुम्हें शक है, तो काबा का बेकस मुसाफ़िर तो हूँ। इसमें भी अगर तुम्हें ताम्मुल हो, तो मुसलमान तो हूँ। यह भी नहीं, तो अल्लाह का एक नाचीज़ बंदा तो हूँ। क्या मेरे मरते हुए बच्चे पर तुम्हें इतना रहम भी नहीं आता?

मैं यह नहीं कहता हूँ कि पानी मुझे ला दो,
तुम आनके चिल्लू से इसे आब पिला दो।
मरता है यह मरते हुए बच्चे को जिला दो,
लिल्लाह, कलेजे की मेरी आग बुझा दो।
जब मुँह मेरा तकता है यह हसरत की नज़र से,
ऐ ज़ालिमो, उठता है धुआँ मेरे ज़िगर से।