पृष्ठ:कर्बला.djvu/३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३५
कर्बला

इतना बेदीन नहीं है । खुदा रसूल को इतना नहीं भूला है। मेरे हाथ गिर पड़ें इसके पहले कि मेरी तलवार हुसैन की गरदन पर पड़े। काश, मुझे मालूम होता कि अमीर मुबाबिया की मौत इतनी नज़दीक है, और उसकी आंखें बन्द होते ही मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा, तो पहले ही इस्तीफा देकर चला जाता । मरवान को सूरत देखने को जी नहीं चाहता, मगर इस वक्त उसकी मर्जी के खिलाफ काम करना अपनी मौत को बुलाना है। वह रत्ती-रत्ती खबर यजीद के पास भेजेगा। उसके सामने मेरी कुछ भी न सुनी जायगी। ऐसा अफ़सर, जो मातहतों से डरे,-मातहत से भी बदतर है । जिस वज़ीर का गुलाम बादशाह का विश्वासपात्र हो, उसके लिए जंगल में ऊँट चराना इससे हजार दर्जे बेहतर है कि वह वजीर की मसनद पर बैठे।

[गुलाम को बुलाता है।]

गुलाम-अमीर क्या हुक्म फर्माते हैं ?

वलीद-जाकर मरवान को बुला ला।

गुलाम-जो हुक्म ।

[जाता है।]

वलीद-(दिल में) हुसैन कितना नेक आदमी है। उसकी जबान से कभी किसी की बुराई नहीं सुनी। उसने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुँचाया। उससे मैं क्योंकर बैयत लूँगा।

[मरवान का प्रवेश ।]

मर०-इतनी रात गये मुझे अाप न बुलाया करें। मेरी जान इतनी सस्ती नहीं है कि बागियों को इस पर छिपकर हमला करने का मौका दिया जाय।

वलीद-तुम्हारा बर्ताव ही क्यों ऐसा हो कि तुम्हारे ऊपर किसी कातिल को तलवार उठे। अभी अभी कासिद मुबाबिया की खबर लाया है, और यजीद का यह खत भी आया है । मुझे तुमसे इसकी बाबत सलाह लेनी है ।

[खत देता है।]

मर०—(खत पढ़कर) आह ! मुबाबिया, तुमने बेवक्त वफ़ात पायी । तुम्हारा नाम तारीख में हमेशा रोशन रहेगा । तुम्हारी नेकियों को याद करके