तोंदवाले हरामखोर हो, पक्के हरामखोर हो। तुम मुझे नीच समझते हो। इसलिए कि मैं अपनी पीठ पर बोझ लादे हुए हूँ। क्या यह बोझ तुम्हारी अनीति और अधर्म के बोझ से ज्यादा लज्जास्पद है, जो तुम अपने सिर पर लादे फिरते हो और शर्माते जरा भी नहीं? उलटे और घमंड करते हो।
इस वक्त अगर कोई धनी अमरकान्त को छेड़ देता, तो उसकी शामत ही आ जाती। वह सिर से पाँव तक बारूद बना हुआ था, बिजली का ज़िन्दा ग़ार!
१६
अमरकान्त खादी बेच रहा है। तीन बजे होंगे, लू चल रही है, बगूले उठ रहे हैं, दूकानदार दूकानों पर सो रहे हैं, रईस महलों में सो रहे हैं, मजूर पेड़ों के नीचे सो रहे हैं, और अमर खादी का गट्ठा लादे, पसीने में तर, चेहरा सुर्ख, आँखें लाल, गली-गली घूमता फिरता है।
एक वकील साहब ने खस का पर्दा उठाकर देखा और बोले--अरे यार, यह क्या गज़ब करते हो, म्युनिसिपल कमिश्नरी की तो लाज रखते, सारा भद्द कर दिया। क्या कोई मजूरा नहीं मिलता था?
अमर ने गट्ठा लिये-लिये कहा--मजूरी करने से म्युनिसिपल कमिश्नरी की शान में बट्टा नहीं लगता। बट्टा लगता है--धोखे-धड़ी की कमाई खाने से।
'यहाँ धोखे-धड़ी की कमाई खाने वाला कौन है भाई ? क्या वकील, डाक्टर, प्रोफ़ेसर, सेठ-साहूकार धोखे-धड़ी की कमाई खाते है ?'
'यह उनके दिल से पूछिये। मैं किसी को क्यों बुरा कहूँ ?'
'आखिर आप ने कुछ समझकर ही तो यह फ़िकरा चुस्त किया है ?'
'अगर आप मुझसे कुछ पूछना ही चाहते हैं तो मैं कह सकता हूँ, हाँ खाते हैं ! एक आदमी दस रुपये में गुजर करता है दूसरे को दस हजार क्यों चाहिये ? यह धाँधली उसी वक्त तक चलेगी जब तक जनता की आँखें बन्द हैं। क्षमा कीजिएगा, एक आदमी पंखे की हवा खाये और खसखाने में
१२० | कर्मभूमि |