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उसने एक तीसरी तजवीज़ पेश की--खेती-बारी की इच्छा हो तो खेती कर लो। सलोनी भाभी के खेत हैं। तब तक वही जोतो।

पयाग ने सूजा चलाते हुए कहा--खेती की झंझट में न पड़ना भैया। चाहे खेत में कुछ हो या न हो, लगान जरूर दो। कभी ओला-पाला, कभी सूखा-बूड़ा। एक-न-एक बला सिर पर सवार रहती है। उस पर कहीं बैल मर गया या खलिहान में आग लग गयी, तो सब कुछ स्वाहा। घास सबसे अच्छी। न किसी के नौकर न चाकर, न किसी का लेना न देना, सबेरे उठाई और दोपहर तक लौट आये।

काशी बोला--मजूरी, मजूरी है; किसानी, किसानी है। मजूर लाख हो, तो मजूर ही कहलाएगा। सिर पर घास लिये जा रहे हैं। कोई इधर से पुकारता है--ओ घासवाले ! कोई उधर से। किसी की मेड़ पर घास कर लो, तो गालियाँ मिलें। किसानी में मरजाद है।

पयाग का सूजा चलना बन्द हो गया--मरजाद लेके चाटो। इधर-उधर से कमा के लाओ, वह भी खेती में झोंक दो।

चौधरी ने फ़ैसला किया--घाटा-नफ़ा तो हरेक रोज़गार में है भैया! बड़े-बड़े सेठों का दिवाला निकल जाता है। खेती के बराबर कोई रोजगार नहीं, जो कमाई और तकदीर अच्छी हो। तुम्हारे यहाँ भी नजर-नजराने का यही हाल है भैया?

अमर बोला--हाँ, दादा, सभी जगह यह हाल है; कहीं ज्यादा, कहीं कम। सभी गरीबों का लहू चूसते हैं।

चौधरी ने सन्देह का सहारा लिया--भगवान् ने छोटे-बड़े का भेद क्यों लगा दिया, इसका मरम समझ में नहीं आता। उसके तो सभी लड़के हैं। फिर सबको एक आँख से क्यों नहीं देखता।

पयाग ने शंका-समाधान की--पूरब जनम का संस्कार है। जिसने जैसे कर्म किये, वैसे फल पा रहा है।

चौधरी ने खंडन किया--यह सब मन को समझाने की बातें हैं बेटा, जिसमें गरीबों को अपनी दशा पर सन्तोष रहे और अमीरों के राग-रंग में किसी तरह की बाधा न पड़े। लोग समझते रहें, कि भगवान् ने हमको गरीब बना दिया आदमी का क्या दोष; पर यह कोई न्याय नहीं है कि हमारे बाल-

कर्मभूमि
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