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बहुजी; पर आऊँ कौन मुंह लेकर। अभी थोड़ी देर हई, लालाजी भी गये है। जुग जुग जियें। सकीना ने मना कर दिया था; इसलिए तलब लेने न गयी थी। वहीं देने आये थे। दुनिया में ऐसे-ऐसे खुदा के बन्दे पड़े हुए हैं। दूसरा होता, तो मेरी सूरत न देखता। उनका बसा बसाया घर मुझ नसीबोंजली के कारण उजड़ गया। मगर लाला का दिल वही है, वही खयाल है, वही परवरिश की निगाह है। मेरी आँखों पर न जाने क्यों परदा पड़ गया था कि मने भोले-भाले लड़के पर बह इलज़ाम लगा दिया। खुदा करे मुझे मरने के बाद कफ़न भी न नसीब हो! मैंने इतने दिनों बड़ी छान-बीन की बेटी! सभी ने मेरी लानत-मलामत की। इस लड़की ने तो मुझसे बोलना छोड़ दिया। खड़ी तो है, पूछो। ऐसी-ऐसी बातें कहती है कि कलेजे में चुभ जाती हैं। खुदा सुनवाता है, तभी तो सुनती हूँ। वैसा काम न किया होता, तो क्यों सुनना पड़ता। उस अँधेरे घर में इसके साथ देखकर मुझे शुबहा हो गया और जब उस गरीबने देखा कि बेचारी औरत बदनाम हो रही है, तो उसकी खातिर अपना धरम देने को भी राजी हो गया। मुझ निगोड़ी को उस गुस्से में यह खयाल भी न रहा कि अपने ही मुंँह तो कालिख लगा रही हूँ।

सकीना ने तीव्र कण्ठ से कहा---अरे, हो तो चुका, अब कब तक दुखड़ा रोये जाओगी। कुछ और बातचीत करने दोगी या नहीं?

पठानिन ने फरियाद की- इसी तरह मुझे झिड़कती रहती है बेटी, बोलने नहीं देती। पूछो, तुमसे दुखड़ा न रोऊँ, तो किसके पास रोने जाऊँ?

सुखदा ने सकीना से पूछा--अच्छा, तुमने अपना वसीका लेने से क्यों इनकार कर दिया था? वह तो बहुत पहले से मिल रहा है!

सकीना कुछ बोलना ही चाहती थी कि पठानिन फिर बोल उठी--- इसके पीछे मुझसे लड़ा करती है बहु। कहती है, क्यों किसी की खैरात लें। यह नहीं सोचती कि उसी से हमारी परवरिश हुई है। बस, आजकल सिलाई की धुन है। बारह-बारह बजे रात तक बैठी आँखें फोड़ती रहती है। जरा सूरंत देखो, इसी वजह से बुखार भी आने लगा है, पर दवा के नाम से भागती है। कहती हूँ जान रखकर काम कर, कौन लाव-लश्कर खानेवाला है। लेकिन यहाँ तो धुन है, घर भी अच्छा हो जाय, सामान

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कर्मभूमि