नहीं। मैंने पेपर में तो दे दिया था। बूढ़े हुए, कहता हूँ आप शान्त होकर बैठिए, और वह चाहते भी हैं, पर यहाँ जब कोई बैठने भी दे। गवर्नर प्रयाग आये थे। उनके यहाँ से खास उनके प्राइवेट सेक्रेटरी का निमन्त्रण आ पहुँचा। लांज़िम हो गया। इस शहर में और किसी के नाम निमन्त्रण नहीं आया। इतने बड़े सम्मान को कैसे ठुकरा दिया जाता। वहीं सरदी खा गये। सम्मान ही तो आदमी की जिन्दगी में एक चीज है, यों तो अपना-अपना पेट सभी पालते हैं। अब यह समझिए, कि सुबह से शाम तक शहर के रईसों का तांता लगा रहता है। सबेरे डिप्टी कमिश्नर और उनकी मेम साहब आई थीं। कमिश्नर ने भी हमदर्दी का तार भेजा है। दो-चार दिन की बीमारी कोई बात नहीं, यह सम्मान तो प्राप्त हुआ! सारा दिन अफ़सरों की खातिरदारी में कट रहा है।
नौकर पान-इलायची की तश्तरी रख गया। मनीराम ने सुखदा के सामने तश्तरी रख दी। फिर बोले--मेरे घर में ऐसी औरत की जरूरत थी, जो सोसाइटी का आचार-व्यवहार जानती हो और लेडियों का स्वागत-सत्कार कर सके। इस शादी से तो वह बात पूरी हुई नहीं। मुझे मजबूर होकर दूसरा विवाह करना पड़ेगा। पुराने विचार की स्त्रियों की तो हमारे यहाँ यों भी कमी न थी; पर वह लेडियों का सेवा-सत्कार तो नहीं कर सकतीं। लेडियों के सामने तो उन्हें ला ही नहीं सकते। ऐसी फूहड़, गँवार औरतों को उनके सामने लाकर अपना अपमान कौन कराये।
सुखदा ने मुसकराकर कहा--तो किसी लेडी से आपने क्यों न विवाह किया?
मनीराम निस्संकोच भाव से बोला--धोखा हुआ और क्या। हम लोगों को क्या मालूम था कि ऐसे शिक्षित परिवार में लड़कियाँ ऐसी फूहड़ होंगी। अम्मा, बहनें और आस-पास की स्त्रियाँ तो नयी बहु से बहुत संतुष्ट हैं। वह व्रत रखती है, पूजा करती है, सिन्दूर का टीका लगाती है, लेकिन मुझे तो संसार में कुछ काम, कुछ नाम करना है। मुझे पूजा-पाठवाली औरतों की जरूरत नहीं; पर अब तो विवाह हो ही गया, यह तो टूट नहीं सकता। मजबूर होकर दूसरा विवाह करना पड़ेगा। अब यहाँ दो-चार लेडियाँ