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है--तो तुमने मुझे पहले ही क्यों न ख़बर दी। मैं इस फ़स्ल की वसूली रोक देता। भगवान् के भण्डार में किस चीज़ की कमी है। मैं इस विषय में बहुत जल्द सरकार से पत्र-व्यवहार करूँगा और वहाँ से जो कुछ जवाब आयेगा, वह असामियों को भिजवा दूंगा। तुम उनसे कहो, धैर्य रखें। भगवान् यह तुम्हारी क्या लीला है?

महन्तजी ने आँखों पर ऐनक लगा ली और दूसरी अर्ज़ियाँ देखने लगे तो अमरकान्त भी उठ खड़ा हुआ। चलते-चलते उसने पूछा--अगर श्रीमान् कारिन्दों को हुक्म दे दें कि इस वक्त असामियों को दिक न करें, तो बड़ी दया हो। किसी के पास कुछ नहीं है; पर मार-गाली के भय से बेचारे घर की चीज़ें बेच-बेचकर लगान चुकाते हैं। कितने ही तो इलाक़ा छोड़-छोड़ भागे जा रहे हैं।

महन्तजी की मुद्रा कठोर हो गयी--ऐसा नहीं होने पायेगा। मैंने कारिंदों को कड़ी ताकीद कर दी है कि किसी असामी पर सख्ती न की जाय। मैं उन सबों से जवाब तलब करूँगा। मैं असामियों का सताया जाना बिल्कुल पसन्द नहीं करता।

अमर ने झुककर महन्तजी को दण्डवत किया और वहाँ से बाहर निकला, तो उसकी बाछें खिली जाती थीं। वह जल्द-से-जल्द इलाके में पहुँचकर यह ख़बर सुना देना चाहता था। ऐसा तेज जा रहा था, मानो दौड़ रहा है। बीच-बीच में दौड़ भी लगा लेता था, पर सचेत होकर रुक जाता था। लू तो न थी पर धूप बड़ी तेज़ थी, देह फुंकी जाती थी, फिर भी वह भागा चला जाता था। अब वह स्वामी आत्मानन्द से पूछेगा, कहिए, अब तो आपको विश्वास आया न कि संसार में सभी स्वार्थी नहीं हैं? कुछ धर्मात्मा भी हैं, जो दूसरों का दुःख-दर्द समझते हैं। अब उसके साथ के बेफ़िकों की ख़बर भी लेगा। अगर उसके पर होते तो उड़ जाता।

सन्ध्या समय वह गाँव में पहुँचा, तो कितने ही उत्सुक, किन्तु अविश्वास से भरे नेत्रों ने उसका स्वागत किया।

काशी बोला--आज तो बड़े प्रसन्न हो भैया; पाला मार आये क्या?

अमर ने खाट पर बैठते हए अकड़कर कहा--जो दिल से काम करेगा, वह पाला मारेगा ही।

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कर्मभूमि