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बहुत से लोग पूछने लगे--भैया, क्या हुकूम हुआ?

अमर ने डाक्टर की तरह मरीज़ों को तसल्ली दी--महन्तजी को तुम लोग व्यर्थ बदनाम कर रहे थे। ऐसी सज्जनता से मिले कि मैं क्या कहूँ; कहा हमें तो कुछ मालूम ही नहीं, पहले ही क्यों न सूचना दी, नहीं हमने वसूली बन्द कर दी होती। अब उन्होंने सरकार को लिखा है। यहाँ कारिंदों को भी वसूली की मनाही हो जायगी।

काशी ने खिसियाकर कहा--देखो, अगर कुछ हो जाय तो जानें।

अमर ने गर्व से कहा--अगर धैर्य से काम लोगे, तो सब कुछ हो जायगा। हल्लड़ मचाओगे, तो कुछ न होगा, उल्टे और डण्डे पड़ेंगे।

सलोनी ने कहा--जब मोटे स्वामी माने!

गूदड़ ने चौधरीपन की ली--मानेंगे कैसे नहीं, उनको मानना पड़ेगा।

एक काले युवक ने जो स्वामीजी के उग्र भक्तों में था, लज्जित होकर कहा--भैया, जिस लगन से तुम काम करते हो, कोई क्या करेगा।

दूसरे दिन उसी कड़ाई से प्यादों ने डांट-फटकार की; लेकिन तीसरे दिन से वह कुछ नर्म हो गये। सारे इलाके में ख़बर फैल गयी कि महन्तजी ने आधी छूट के लिए सरकार को लिखा है। स्वामीजी जिस गांव में जाते, वहाँ लोग उन पर आवाजें कसते। स्वामीजी अपनी रट अब भी लगाये जाते थे। यह सब धोखा है कुछ होना-हवाना नहीं है, उन्हें अपनी बात की आ पड़ी थी। असामियों की उन्हें उतनी फ़िक्र न थी, जितनी अपने पक्ष की। अगर आधी छूट का हुक्म आ जाता, तो शायद वह यहाँ से भाग जाते। इस वक्त तो वह इस वादे को धोखा साबित करने की चेष्टा करते थे, और यद्यपि जनता उनके हाथ में न थी, पर कुछ-न-कुछ आदमी उनकी बातें सुन ही लेते थे। हाँ इस कान सुन कर उस कान उड़ा देते।

दिन गुज़रने लगे, मगर कोई हुक्म नहीं आया। फिर लोगों में सन्देह पैदा होने लगा। जब दो सप्ताह निकल गये, तो अमर सदर गया और वहाँ सलीम के साथ हाकिम जिला मि० ग़ज़नवी से मिला। मि० ग़ज़नवी लम्बे, दुबले, गोरे, शौकीन आदमी थे। उनकी नाक इतनी लम्बी और चिबुक इतना गोल था कि हास्य-मूर्ति-से लगते थे और ये भी बड़े विनोदी। काम उतना ही करते थे, जितना ज़रूरी होता था और जिसके न करने से जवाब तलब हो

कर्मभूमि
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