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करवाता है, आप ही उसे सजा देता है, और आप ही उसे मुआफ़ कर देता है।

अमर ने आपत्ति की---बुराई खुदा नहीं कराता, हम खुद करते हैं।

काले खाँ ने ऐसी निगाहों से उसकी ओर देखा, जो कह रही थीं, तुम इस रहस्य को अभी नहीं समझ सकते---ना, ना मैं यह न मानूँगा। तुमने तो पढ़ा होगा, उसके हुक्म के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिल सकता, बुराई कौन करेगा। सब कुछ वही करवाता है, और फिर माफ़ भी कर देता है। यह मैं मुँह से कह रहा हूँ। जिस दिन मेरे ईमान में यह बात जम जायगी उसी दिन बुराई बन्द हो जायगी। तुम्हीं ने उस दिन मुझे यह नसीहत सिखाई थी। मैं तुम्हें अपना पीर समझता हूँ। दो सौ की चीज़ तुमने तीस रुपये में न ली। उसी दिन मुझे मालूम हुआ, कि बदी क्या चीज़ है। अब सोचता हूँ अल्लाह को कौन मुँह दिखलाऊँगा। ज़िन्दगी में इतने गुनाह किये हैं कि जब उनकी याद आती है, तो रोएँ खड़े हो जाते हैं। अब तो उसी की रहीमी का भरोसा है। क्यों भैया, तुम्हारे मज़हब में क्या लिखा है। अल्लाह गुनाहगारों को मुआफ़ कर देता है?

काले खाँ की कठोर मुद्रा इस गहरी, सजीव, सरल भक्ति से प्रदीप्त हो उठी, आँखों में कोमल छटा उदय हो गयी। और वाणी इतनी मर्मस्पर्शी इतनी आद्र थी कि अमर का हृदय पुलकित हो उठा---सुनता तो हूँ खाँ साहब कि वह बड़ा दयालु है।

काले खाँ दूने वेग से चक्की घुमाता हुआ बोला--बड़ा दयालु है भैया! मां के पेट में बच्चे को भोजन पहुँचाता है। यह दुनिया ही उसकी रहीमी का आईना है। जिधर आँखें उठाओ, उसकी रहीमी के जलवे! इतने ख़ूनी डाकू यहाँ पड़े हुए हैं, उनके लिए भी आराम का सामान कर दिया। मौका देता है, बार-बार मौक़ा देता है कि अब भी सँभल जायें। उसका कौन गुस्सा सहेगा भैया। जिस दिन उसे गुस्सा आवेगा, यह दुनिया जहन्नुम को चली जायगी। हमारे-तुम्हारे ऊपर वह क्या गुस्सा करेगा। हम चींटी को पैरों तले पड़ते देखकर किनारे से निकल जाते हैं। उसे कुचलते रहम आता है। जिस अल्लाह ने हमको बनाया, जो हमको पालता है, वह हमारे ऊपर कभी ग़ुस्सा कर सकता है? कभी नहीं।

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कर्मभूमि