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अल्लाह से? अल्लाह की यही मरज़ी है, तो उसमें दूसरा कौन दखल दे सकता है। अल्लाह की मरजी के बिना कहीं एक पत्ती भी हिल सकती है? ज़रा मुझे पानी पिला दो। और देखो जब मैं मर जाऊँ, तो यहाँ जितने भाई हैं, सब मेरे लिए खुदा से दुआ करना। और दुनिया में मेरा कौन है! शायद तुम लोगों की दुआ से मेरी नजात हो जाय।

अमर ने उसे गोद में सँभालकर पानी पिलाना चाहा। घूँट कण्ठ के नीचे न उतरा। वह जोर से कराहकर फिर लेट गया।

ठिगने क़ैदी ने दाँत पीसकर कहा---ऐसे बदमाश की गरदन तो उलटी छुरी से काटनी चाहिए।

काले खाँ दीन-भाव से रुक-रुककर बोला---क्यों मेरी नजात का द्वार बन्द करते हो भाई! दुनिया तो बिगड़ गयी, क्या आक़बत भी बिगाड़ना चाहते हो? अल्लाह से दुआ करो, सब पर रहम करो। ज़िन्दगी में क्या कम गुनाह किये हैं, कि मरने के पीछे पाँव में बेड़ियाँ पड़ी रहें! या अल्लाह! रहम करो।

इन शब्दों में मरनेवाले की निर्मल आत्मा मानो व्याप्त हो गयी थी। बातें वही थीं, जो रोज़ सुना करते थे। पर इस समय इनमें कुछ ऐसी द्रावक, कुछ ऐसी हिला देने वाली सिद्धि थी कि सभी जैसे उसमें नहा उठे। इस चुटकी-भर राख ने जैसे उनके तापमय विकारों को शान्त कर दिया।

प्रातःकाल जब काले खाँ ने अपनी जीवन-लीला समाप्त कर दी तो ऐसा कोई क़ैदी न था, जिसकी आँखों से आँसू न निकल रहे हों; पर औरों का रोना दुःख की बात थी, अमर का रोना सुख का था। औरों को किसी आत्मीय के खो देने का सदमा था, अमर को उसके समीप हो जाने का अनुभव हो रहा था। अपने जीवन में उसने यही एक नररत्न पाया था, जिसके सम्मुख वह श्रद्धा से सिर झुका सकता था और जिससे वियोग हो जाने पर उसे एक वरदान पा जाने का भान होता था।

इस प्रकाश-स्तंभ ने आज उसके जीवन को एक दूसरी ही धारा में डाल दिया जहाँ संशय की जगह विश्वास और शंका की जगह सत्य मूर्तिमान हो गया था।

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कर्मभूमि