दुःख हो, क्योंकि वह गर्भवती है। उसकी इच्छा के विरुद्ध वह छोटी-से छोटी बात भी नहीं कहना चाहता। वह गर्भवती है। उसे अच्छी-अच्छी किताबें पढ़कर सुनाई जाती हैं। रामायण, महाभारत और गीता से अब अमर को विशेष प्रेम है; क्योंकि सुखदा गर्भवती है। बालक के संस्कारों का सदैव ध्यान बना रहता है। सुखदा को निरंतर प्रसन्न रखने की चेष्टा की जाती है। उसे थियेटर, सिनेमा दिखाने में अब अमर को संकोच नहीं होता। कभी फूलों के गजरे आते हैं। कभी कोई मनोरंजन की वस्तु। सुबह-शाम वह दूकान पर भी बैठता है। सभाओं की ओर उसको रुचि नहीं है। वह पुत्र का पिता बनने जा रहा है इसकी कल्पना से उसमें ऐसा उत्साह भर जाता है, कि वह कभी-कभी एकान्त में नतमस्तक होकर कृष्ण के चित्र के सामने सिर झका लेता है। सूखदा तप कर रही है। अमर अपने को नई जिम्मेदारियों के लिये तैयार कर रहा है। अब तक वह समतल भूमि पर था, बहुत सँभलकर चलने की उतनी ज़रूरत न थी। अब वह ऊँचाई पर जा पहुँचा है। वहाँ बहुत सँभालकर पांव रखना पड़ता है।
लाला समरकान्त भी आज-कल बहुत खुश नज़र आते हैं। बीसों ही बार अन्दर जाकर सुखदा से पूछते हैं कि किसी चीज़ की जरूरत तो नहीं है। अमर पर उनकी कृपा दृष्टि हो गई है। उसके आदर्शवाद को वह उतना बुरा नहीं समझते। एक दिन काले खां को उन्होंने दुकान से खड़े-खड़े निकाल दिया। असामियों पर अब वे उतना नहीं बिगड़ते, उतनी नालिशें नहीं करते। उनका भविष्य उज्ज्वल हो गया है। एक दिन रेणुका से बातें हो रही थीं। अमरकान्त की निष्ठा की उन्होंने दिल खोलकर प्रशंसा की।
रेणुका उतनी प्रसन्न न थी। प्रसव के कष्टों को याद करके वह भयभीत हो जाती थी। बोली--लालाजी, मैं तो भगवान से यही मनाती हूँ कि जब हँसाया है, तो बीच में रुलाना मत। पहलौंठी में बड़ा संकट रहता है। स्त्री का दूसरा जन्म हो जाता है।
समारकान्त को ऐसी कोई शंका न थी। बोले--मैंने तो बालक का नाम सोच लिया है। उसका नाम होगा--रेणुकान्त।
रेणुका आशंकित होकर बोली--अभी नाम न रखिए लालाजी ! इस संकट से उद्धार हो जाय, तो नाम सोच लिया जायगा। मैं तो सोचती हूँ,