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कलम, तलवार और त्याग
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आरभ-मात्र कर पाये, वह देशवासियों की लापरवाही और कमहिम्मती से नष्ट न हो जाय। इसका सर्वोत्तम उपाय आपको यही दिखाई दिया कि उनके पदचिह्नों का अनुसरण किया जाय। यद्यपि इतने दिनों के अनुभव के बाद भारतवासियों को अब मालूम हो गया है कि अपने कष्टों की कहानी इंगलैण्डवालों को सुनाना बेकार है, और हमारा उद्धार होगी तो अपनी हिम्मत और पुरुषार्थ से ही होगा, पर आपका विश्वास था कि भारत के विषय में ब्रिटिश जनता की वर्तमान उपेक्षा का कारण केवल उसका अज्ञान है। उसकी सहज न्यायप्रियता अब भी लुप्त नहीं हुई है। आपको पूरा भरोसा था कि भारत की स्थिति से परिचित हो जाने के बाद वह अवश्य उसकी ओर ध्यान देगी। हमारे लोक-नायकों की सदा यही विचार रहा है। अतः समय-समय पर कांग्रेस के प्रतिनिधियों को विलायत भेजने के यत्न होते रहे हैं। पहली बार जो प्रतिनिधि गये थे, उनमें सुरेन्द्रनाथ बनर्जी और स्वर्गीय मिस्टर मनमोहन घोष जैसे धुरन्धर वक्ता थे। उनका यत्न बहुत कुछ फल-जनक सिद्ध हुआ। १९०६ ई० में फिर यही आन्लदोन उठा और निश्चय हुआ कि हर सूबे से एक-एक प्रतिनिधि इंगलैण्ड भेजा जाय। इस गुरुतर कार्य के लिए सारे बम्बई प्रांत की अनुरोध भरी दृष्टि सिस्टर गोखले की ओर उठी और उनके कठिन कार्य-साधन में आनन्द पानेवाले स्वभाव से बड़े उत्साह से इस भार को अपने ऊपर लिया जिसे उठाने के लिए आपसे अधिक उपयुक्त व्यक्ति मिल नहीं सकता था।

इङ्गलैण्ड में विचारवान् व्यक्तियों ने आपको बड़े प्रेम और उत्साह से स्वागत किया। पर चूँकि इसी बीच वङ्गभङ्ग और स्वदेशी आंदोलन की चर्चा भी उठ गई थी, इसलिए भारतवासियो को आशंका थी कि मैंचेस्टर और लंकाशायरवाले, जो स्वदेशी आंदोलन के कारण रुष्ट हो रहे हैं, आपकी उपेक्षा न करें। सोचा जाता था कि उन स्थानों में जाते हुए आप खुद भी हिचकेंगे। पर आपकी गहरी निगाह ने भाँप लिया कि उनसे दूर रहना और भी बिलगाव को कारण होगा। जब