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बद्रुद्दीन तैयबजी
 


आपके जीवन-वृत्तान्त का वर्णन करते हुए एक घटना लिखी है जो आपके जातीय स्वाभिमान पर प्रकाश डालती है। एक बार वक़फ़ (धर्मोत्तर सम्पत्ति) के मुकदमे में बम्बई के एडवोकेट जेनरल ने अदालत में कहा कि इस प्रश्न पर ‘मोहन उनला' में संभवतः कोई फैसला नहीं है। जस्टिस बद्रुद्दीन इसका सहन न कर सके और बोले-‘मिस्टर एडवोकेट जेनरल, यह कहने का साहस करना कि इस मसले पर व्यापक और सङ्कपूर्ण ‘मोहन उनला' में कोई फैसला नहीं है, इस पूजनीय विधान का अपमान करना है। इस पर ऐडवोकेट जेनरल ने तुरंत माफी माँगी और कहा कि 'मोहन उनला' से कोई फैसला न होने से मेरा अभिप्राय केवल यह था कि मेरी पहुँच वहाँ तक नहीं है, अर्थात् उसका अंग्रेजी में अनुवाद नहीं हुआ है।

एक दूसरे मौके पर एक अंग्रेज बैरिस्टर ने किसी मुकदमे में कुछ यूपियन गवाह पेश करते हुए कहा-यह गवाह यूरोपियन होने के कारण दूसरे गवाहो की अपेक्षा जो प्रतिष्ठित व्यापारी हैं, पर हिन्दूस्तानी है, अधिक विश्वसनीय हैं। जस्टिस बद्रुद्दीन ने तुरन्। उन बैरिस्टर साहब की ज़बान पकड़ी और बोले- क्या आप सोचते हैं कि हर एक अंग्रेज हर एक हिन्दुस्तानी से स्वभावतः अधिक सत्यवादी और प्रमाणिक होता है ? ऐसा कहना इस अदालत का अपमान करना है। बैरिस्टर साहब बहुत ही लज्जित हुए।

उस समय की इण्डियन नैशनल कांग्रेस के आप सदा प्रशंसक और सहायक रहे। एक बार किसी बैरिस्टर ने कांग्रेस के विषय में कुछ अनुचित शब्द कहे। जस्टिस बद्रुद्दीन ने उनसे तो कुछ न कहा, पर मुक़दमे का फैसला लिखते हुए कांग्रेस के प्रति अपने सद्भाव को दुहराया और लिखा-कांग्रेस वह प्रभावशालिनी संस्था है जो राष्ट्र की आवश्यकताओं और अंगों को सर्वोत्तम प्रकार से प्रतिनिधित्व करती हैं।

भारतवासियों की अव्यवस्थितता तो प्रसिद्ध ही है। समय का पालन ऐसा गुण है जिससे साधारणतया हम वंचित हैं। किसी सभा-