पृष्ठ:कलम, तलवार और त्याग.pdf/५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
कलम, तलवार और त्याग
[ ५०
 


से ले जा सकते थे। हिन्दुस्तान में बहुत पुराने जमाने से सेनानायकों और मनसबदारो की धांधली के कारण सेना की विचित्र अवस्था हो रही थी। सिपाहियों और सवारों की तनखाओं के लिए सरदारों को बड़ी-बड़ी जागीरें दी गई थीं। पर सेना को देखो तो पता नहीं, और जो थी भी उसकी कुछ अजीब हालत थी। किसी सैनिक के पास घोड़ा है तो जीत नहीं, हथियार है तो कपड़े नहीं; अकबर ने, सबसे पहले अपनी सुधारक दृष्टिं इसी ओर डाली और सिपाहियों को सरदारो के पोषण से निकालकर राज्य की छत्रछाया में लिया। उनकी नक़द तनख्वाहें बाँध दीं और चेहरानबीसी तथा घोड़ों के द्वारा के द्वारा उनको बदनीयती के चंगुल से छुटकारा दिलाया और इस प्रकार समय पर काम देनेवाली स्थायी सेना (Standing Army) की नींव डाली। इस प्रकार अकबर ही पहला व्यक्ति है जिसने प्राचीन समस्त पद्धति को तोड़कर राज्य की शक्ति तथा अधिकार की स्थापना की है।

यद्यपि दुनिया के महान विजेताओं की श्रेणी में अकबर को भी, अयनी चढ़ाइयों की सफलता और विजित भूखण्ड के विस्तार की दृष्टि से, विशिष्ट पद प्राप्त है, पर जिस बात ने वस्तुतः अकबर को अकबर बनाया, वह उसका जंगी कारनामा नहीं है, किन्तु वह अधिभूत की सीमा को पार कर अध्यात्म तक फैली हुई है। उसने जीवन के आरंभ में ही विपद् के विद्यालय में जो शिक्षा पाई थी, वह ऐसी उथली न थी कि अपने बाप की तबाही और खड़े खड़े हिन्दुस्तान निकाले जाने और दर-दर ठोकरें खाते फिरने से प्रभावकारी उपदेश ने ग्रहण करता और यह बात सच हो या न हो कि उसके पिता को ईरान के बादशाह तहमास्प सफवी ने हिन्दुस्तान लौटते समय दो उपदेश दिये थे- एक यह कि पठानो को व्यापार में लगाना, दूसरा यह कि भारत की देशी जातियों को अपना बनाना, पर समय ने स्वयं उसको बता दिया था कि राज्य को टिकाऊ बनाने का कोई उपाय हो सकता है तो वह यही है कि उसकी नींव तलवार की पतली धार के बदले लोक-कल्याण के द्वारा प्रज्ञा के हृदयों में स्थापित की जाय। अतः पहले ही साल