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कलम, तलवार और त्याग
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हैं कि यूरोप में उसकी चलन है। किन्तु उसके लिए हम अपने धर्म-प्रन्थों और पुरातन पूर्वजों का मत जानने का यत्न करते और उनके निर्णय को सर्वोपरि मानते हैं। और यह सब ब्रह्म-लीन स्वामी विवेकानन्द के आध्यात्मिक उपदेशों का ही चमत्कार है।

स्वामी विवेकानन्दजी का जीवन-वृत्तान्त बहुत संक्षिप्त है। दुःख है। कि आप भरी जवानी में ही इस दुनिया से उठ गये और आपके महान व्यक्तित्व से देश और जाति को जितना लाभ पहुँच सकता था, ने पहुँच सका। १८६३ ई० में वह एक प्रतिष्ठित कामराय कुल में उत्पन्न हुए। बचपन से ही होनहार दिखाई देते थे। अग्रेजी स्कूलों में शिक्षा पाई और १८८५ ई० में बी० ए० की डिग्री हासिल की। उस समय इनका नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। कुछ दिनों तक ब्राह्म-समाज के अनुयायी रहे। नित्य प्रार्थना में सम्मिलित होने और चूँकि माला बहुत ही अच्छी पाया था, इसलिए कीर्तन-समाज में भी शरीक हुआ करते थे। पर ब्राह्म-समाज के सिद्धान्त उनकी प्यास न बुझा सके । धर्म उनके लिए केवल किसी पुस्तक से दो-चार श्लोक पढ़ देने, कुछ विधि-विधानों का पालन कर देने और गीत गाने का नाम नहीं हो सकता था। कुछ दिनों तक सत्य की खोज में इधर-उधर भटकते रहे। उन दिनों स्वामी रामकृष्ण परमहंस के प्रति लोगों को बड़ी श्रद्धा थी। नवयुवक नरेन्द्रनाथ ने भी उनके सत्संग से लाभ उठाना आरंभ किया और धीरे-धीरे उनके उपदेशों से इतने प्रभावित हुए कि उनकी भक-मंडली में सम्मिलित हो गये और उस मचे गुरु से अध्यात्मतत्व और वेदान्तरहस्य स्वीकार कर अपनी जिज्ञासा तृप्त की। परमहंसजी के देह-त्याग के बाद नरेन्द्र ने कोट-पतलून उतार फेंका और संन्यास ले लिया। उस समय से आप विवेकानन्द नाम से प्रसिद्ध हुए। उनको गुरु-भक्ति गुरुपूजा की सीमा तक पहुँच गई थी। जब कभी आप इनकी चर्चा करते हैं, तो एक-एक शब्द से श्रद्धा और सम्मान टपकता है। मेरे गुरुदेव' के नाम से उन्होंने न्यूयार्क में एक विद्वत्तापूर्ण भाषण किया जिसमें परमहंसजी