पृष्ठ:कलम, तलवार और त्याग.pdf/८६

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राजा मानसिंह

‘दरबारे-अकबरी' के रचयिता ने, जिसकी कलम मैं जादू था, क्या .खुब कहा है-इस उच्च-कुल संभूत राजा का चित्र दरबारे-अक- बरी के चित्र-संग्रह में सोने के पानी से खींचा जाना चाहिए। निस्सन्देह! और न केवल मानसिंह का, किन्तु उसके कीर्तिशाली पिता राजा भगवानदास और सुविख्यात दादा राजा भारमल के चित्र भी इसी सम्मान और श्रृंगार के अधिकारी हैं। राजा भारमल वह पहला बुद्धिमान और दूर तक देखने-सोचनेवाला राजा था, जिसने हजारों साल के धार्मिक संस्कारों को देश के सामयिक हित पर बलिदान करके मुसलमानों से नाता जोड़ा और सन् ९६९ हिन्नी में अपनी रुप-गुण- शीला कन्या को अकबर की पटरानी बनाया। आमेर के कछवाहा वंश को विचार-स्वातन्त्र्य और धर्मगत उदारता के क्षेत्र में अगुआ बनने का गौरव प्राप्त है। और जब तक ज़माने की निगाहों में इन पुनीत गुणों का आदर रहेगा। इस घराने के नाम पर सम्मान की श्रद्धा- ञ्जलि अर्पित की जाती रहेगी।

मानसिंह आमेर में पैदा हुआ और उसका बचपन उसी देश के जोशीले, युद्धप्रिय निवासियों में बीता, जिनसे उसने वीरता और साहस के पाठ पढ़े। पर जब जवानी ने हृदय में उत्साह और उत्साह में उमंग पैदा की तो अकबर के दरबार की तरफ रुख किया जो उस जमाने में मान-प्रतिष्ठा, पद और अधिकार की खान समझा जाता था। भगवानदास की सच्ची शुभचिन्तना और उत्सर्गमयी सहायताओं