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कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ

मेरा ख्याल है, बड़ा मुश्किल है । आप स्वयं विचार करें, आप में और बालक में क्या अन्तर है ?

सदियाँ बीत गयीं, युग बीत गये । मनुष्य का रूप, रंग, चाल-चलन, आचार-विचार सब कुछ बदल गया । बुद्धि का विपुल विकास हुआ । मनुष्य परमाणु शक्ति के बल पर शीघ्र ही चन्द्रलोक में पहुँचनेवाला है, परन्तु आज भी चित्र को वस्तु समझने का भ्रम बना है । अपनी जगह है । युरोप के विश्व-विख्यात कलाकार रूवेन्स ने ऐसे चित्रों का निर्माण किया जिनमें शरीर के अंग, जीवित लहू-युक्त मांस-पेशियों-से प्रतीत होते हैं और उन्हें छकर देखने की अनायास इच्छा होती है । भारतवर्ष में ऐसी कला तो दृष्टिगोचर नहीं हो सकी, पर राजा रवि वर्मा ने इस ओर प्रयास किया था । और भी इस प्रकार के चित्रकार थे, और हैं, यद्यपि उतनी सफलता उन्हें प्राप्त नहीं हुई । हमारे समाज में भी अधिकतर व्यक्ति चित्र का यही आदर्श आज भी मानते हैं और कलाकार से ऐसी ही आशा करते हैं । क्या मैं कहूँ कि बालक, गौरैया और मनुष्य की प्रकृति चित्र के प्रति आज भी एक-सी है ? हम चाहते हैं कि चित्र ऐसा हो जो वस्तु का भ्रम उत्पन्न कर सके । चित्र में किसी वस्तु का ऐसा चित्रण हो जो हमें भ्रम में डाल दे और चित्र में बनी वस्तु हम वही वस्तु समझ सकें ।

आधुनिक कला ने हमारी इस प्रकृति के बिलकुल विपरीत कदम उठाया है--हमारा भ्रम ही हमसे छीना जा रहा है । कैसे हम आधुनिक कला का आदर कर सकते है ?

भारतवर्ष में यद्यपि और बातों में मति-भ्रम हुआ है , परन्तु भारतीय प्राचीन चित्रकला का इतिहास प्रमाण है कि इस भ्रम में पड़ने का यहाँ कभी प्रयत्न नहीं हुआ ।

आज यूरोप तथा अन्य पाश्चात्य देशों में भी आधुनिक कला ने इस भ्रम के विरुद्ध मोर्चा बना लिया है । चित्रकला स्वाभाविकता से कहीं दूर पहुँच गयी है ।

चित्र चित्र है, वस्तु वस्तु है । दोनों एक नहीं हैं । हाँ, वस्तु का भी चित्रण हो सकता है, होता आया है, हो रहा है और भविष्य में भी होगा । अब प्रश्न यह है कि क्या वस्तु का ही चित्रण करना कला है ? ऐसा समझा जाता था और आज भी लोग ऐसा ही समझते हैं । चित्र शब्द का सम्बोधन करते ही प्रश्न उठता है, किस वस्तु का चित्र ? किसी जीव, पदार्थ या वस्तु का चित्र ? यह समझना एक परम्परा-सी हो गयी है । यही परिभाषा बन गयी है-चित्र किसी वस्तु का होता है अर्थात् चित्र रेखा, रंग, रूप के माध्यम से किसी वस्तु का चित्रण होता है । चित्र वस्तु का चित्रण न होकर और क्या हो सकता है ?वस्तु-चित्रण ही कला है, ऐसा अधिकतर लोगों का ख्याल है ।