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कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ

विद्वान् मनोवैज्ञानिक युग समझते हैं। इस शताब्दी में जितना प्रादुर्भाव मनोविज्ञान का हुआ है उतना और किसी वस्तु का नहीं। आज मनोवैज्ञानिक युद्ध हो रहें हैं, मनोवैज्ञानिक आधार पर साहित्य का निर्माण हो रहा है, मनोवैज्ञानिक ढंग से व्यापार हो रहा है, मनो-विज्ञान से चिकित्सा हो रही है और नित्यप्रति के व्यवहार की परख भी हम मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से कर रहें हैं। आधुनिक शिक्षा का तो मनोविज्ञान आधार ही बन गया है। कुछ लोग तो मनोविज्ञान को शिक्षा ही समझते हैं। ऐसी अवस्था में कला भी मनोवैज्ञानिक न हो, यह असंभव है।

आधुनिक चित्रकला मनोवैज्ञानिक है। चित्रकार मनोवैज्ञानिक ढंग से अपने चित्र बनाता है। मनोविज्ञान वह विद्या है जिसके द्वारा हम यह स्थिर करते हैं कि "ऐसा क्यों होता है? या इस कार्य या व्यवहार का कारण क्या है? अर्थात् हम यह पहले सोचते हैं कि अमुक कार्य क्यों होता है? मनुष्य के व्यवहारों का कारण ज्ञात करना, जैसे वह स्वप्न क्यों देखता है, वह अप्रसन्न क्यों होता है, वह धार्मिक क्यों बनता है, वह ज्ञान का उपार्जन क्यों करता है इत्यादि। चित्रकला भी मनुष्य का एक कार्य है। मनोविज्ञान इसका भी उत्तर देता है कि मनुष्य चित्रकला का कार्य क्यों करता है।

मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि प्रत्येक मनुष्य में आत्म-अभिव्यक्ति तथा सहज क्रियात्मक वृत्ति अवश्यम्भावी है जो उसकी जन्मजात प्रवृत्ति है और इसी के फलस्वरूप वह रचना भी करता है। मनुष्य जब कोई वस्तु देखता है तो उसके हृदय के भीतर आन्दोलन होता है। उसकी सहज-क्रियात्मक प्रवृत्ति उस अनुभव को व्यक्त करने के लिए उसे प्रेरित करती है। इस प्रकार वह अपने चित्र में उन्हीं उद्वेगों तथा मनोवेगों की अभिव्यक्ति करना अपना लक्ष्य बनाता है। अर्थात् उसके हृदय में जो हल-चल हुई उसी का प्रतिरूप बाहरी स्वरूपों के आधार पर निर्मित कर उनकी अभिव्यक्ति करता है।

इस प्रकार एक ही वस्तु को देखकर विभिन्न चित्रकारों में विभिन्न भावनाएँ, मनोवेग या उद्वेग उठ सकते हैं। चाँद को देखकर एक मनुष्य प्रसन्नता का बोध करता है जब वह संयोगावस्था में हो, परन्तु वही चाँद वियोगावस्था में दुःखदायी हो सकता है। दोनों व्यक्तियों को वही चाँद भिन्न-भिन्न उद्वेग प्रदान करता है। अर्थात् चाँद से अधिक महत्त्वपूर्ण उन दोनों व्यक्तियों की अपनी-अपनी मानसिक अवस्थाएँ हैं। इस प्रकार यदि दो चित्रकार चाँद को चित्रांकित करें तो उनका दृष्टिकोण उसे व्यक्त करने का भिन्न-भिन्न होगा। अर्थात् बाहरी वस्तु से अधिक महत्त्वपूर्ण मनुष्य के मन में छिपी भावना है। यही कारण है कि विविध भावनाओं के कारण विविध प्रकार के चित्रकार है और उनकी विविध शैलियाँ हैं।