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घनत्व-निर्माण की प्रवृत्ति

पेट को चौथा, जाँघों को पाँचवाँ, पैरों को छठा,पंजों को सातवाँ और प्रत्येक बांह, हाथ तथा उँगलियों को अलग-अलग घन या सिलिण्डर समझें। इस प्रकार चित्र के रूपों में थोड़ी विकृति उत्पन्न कर घनत्व की भावना लायी जाने लगी। साथ ही साथ यह भी प्रयास हुआ कि प्राकृति या प्रकार का आगे तथा पीछे दोनों का रूप चित्र में एक साथ दिखाई पड़े, जैसे-सामने का मुंह, नाक इत्यादि और साथ ही साथ पीछे की चोटी, बाल, सिर में गुथे पुष्प और आभूषण भी। गहराई दिखाने के लिए पारदर्शक रूप से अंगों को बनाया जाने लगा ताकि आगे और पीछे का रूप एक साथ दिखाई पड़े। रंगों में घनत्व का ध्यान रखकर इस प्रकार उपयोग होने लगा कि उनसे चित्र में पास और दूर का भाव पैदा किया जा सके। इस प्रकार एक ही चित्र में कई दृश्य दिखाने की भावना घनत्व उत्पन्न करने के लिए प्रारम्भ हुई, परन्तु आगे चलकर यही भावना आधुनिक कला की अन्य शैलियों का विकास करती है, जैसे स्वप्निल-कला तथा सूक्ष्म-कला।

आज भारतवर्ष में भी इन आधुनिक शैलियों का काफी प्रचार हो गया है और उसी प्रकार क्यूविज्म का भी।