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कला और सौन्दर्य

तथा नाट्य-कला इत्यादि ही प्रमुख हैं। हमारा भी सम्बन्ध यहाँ केवल चित्रकला से है, इसलिए उसी का विचार करना आवश्यक है।

किसी चित्र को देखकर पहला वाक्य जो मनुष्य के मुँह से निकलता है, वह है ‘चित्र सुन्दर है’। सुन्दरता पहली वस्तु है जिसे देखनेवाला सबसे पहले चित्र में खोजता है। चित्र में सुन्दरता पाने पर देखनेवाले को प्रसन्नता होती है, सन्तुष्टि होती है और सुख मिलता है। इसका यह तात्पर्य नहीं कि जिस वस्तु में सुख, सन्तुष्टि तथा प्रसन्नता मिले वह कला है, पर सुन्दर तो उसे अवश्य कहा जा सकता है, जैसे भूखे मनुष्य के सामने यदि भोजन रख दिया जाय तो उसे सुख, सन्तुष्टि और प्रसन्नता होती है, पर भोजन कला नहीं है, या सरोवर में उगे कमल को जो हमें सुख, सन्तुष्टि तथा प्रसन्नता देता है, कला नहीं कहा जा सकता-यद्यपि सुन्दरता उसमें अवश्य दिखाई पड़ती है। इसलिए कला और सुन्दरता एक वस्तु नहीं हैं। हाँ, मनुष्य के कार्यों में जब ये तीनों वस्तुएँ मिलती है और सुन्दरता भी होती है, तो उसे हम कला कह सकते हैं। इसलिए सुन्दरता कला नहीं है बल्कि मनुष्य का कार्य कला है, जिसमें सुन्दरता होना हम आवश्यक समझते हैं।

सुन्दरता हमें तभी प्रतीत होती है जब उस कार्य को देखकर हमें प्रसन्नता, सन्तुष्टि तथा सुख मिलता है। मनुष्य तभी प्रसन्न होता है जब उसे इच्छित वस्तु मिलती है। यदि एक शराबी को एक बोतल शैम्पेन मिल जाय तो उसकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहता। एक भिखारी को भरपेट भोजन मिल जाय तो वह प्रसन्न हो जाता है। एक किसान की यदि खेती लहरा जाय तो वह प्रसन्नता से भर जाता है। अर्थात् जिस मनुष्य को जिस वस्तु की इच्छा रही है उसकी प्राप्ति पर उसे प्रसन्नता होती है, सन्तुष्टि होती है और सुख मिलता है। इस प्रकार प्रत्येक मनुष्य की इच्छाएँ भिन्न हो सकती हैं और उसे इसी प्रकार भिन्न-भिन्न वस्तुओं में सुख मिलता है। सुन्दरता भी भिन्न-भिन्न रुचि तथा इच्छा के अनुसार भिन्न-भिन्न व्यक्तियों को भिन्न-भिन्न वस्तुओं या कार्यों में मिलती है। इसलिए सुन्दरता का आधार मनुष्य की रुचि तथा इच्छा है। सुन्दरता कोई ऐसी वस्तु नहीं जो किसी एक स्थान पर एक ही रूप में सबको मिले। विभिन्न व्यक्तियों को विभिन्न वस्तुओं में सुन्दरता मिलती है। इसलिए हम कह सकते हैं कि सुन्दरता कोई गुण नहीं है, वह केवल एक भाव है जो मनुष्य तब प्रकट करता है जब उसे अपनी रुचि या इच्छा की वस्तु मिल जाती है।

ऐसी स्थिति में कलाकार या चित्रकार से यह कैसे आशा की जा सकती है कि वह अपनी रचना में ऐसी सुन्दरता भर सके जो विभिन्न व्यक्तियों को मान्य हो। विभिन्न