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कला और आधुनिक प्रवृत्तियों

व्यक्ति विभिन्न वस्तुओं में सुन्दरता पाते हैं, एक ही चित्र में सभी को सुन्दरता मिले यह कैसे हो सकता है? जैसे-जैसे मनुष्य का समाज विकसित हो रहा है, मनुष्य की इच्छाओं तथा रुचियों में निरन्तर भिन्नता बढ़ती जा रही है। ऐसी स्थिति में कला में सुन्दरता तथा रुचियों में निरन्तर भिन्नता बढ़ती जा रही है। ऐसी स्थिति में कला में सुन्दरता पाना सबके लिए आसान नहीं। चित्रकार या कलाकार सब की इच्छित वस्तु एक ही चित्र में कैसे जुटा सकता है? यही कारण है कि आज हम चित्र में सुन्दरता नहीं खोज पाते। चित्रकार जानता है कि वह विभिन्न इच्छाओं की वस्तु एक जगह इकट्ठा नहीं कर सकता। इसलिए वह इन इच्छाओं को अधिक महत्त्व नहीं देता, न वह चित्र में सुन्दरता को महत्त्व देता है, क्योंकि सुन्दरता कोई एक निश्चित वस्तु तो है नहीं, वह भी भिन्न-भिन्न है। यही कारण है कि आधुनिक चित्रकार सुन्दरता को महत्त्व नहीं देता, न इसके बारे में वह कभी सोचता है, न वह यह चाहता है कि लोग उसके चित्रों में सुन्दरता खोजें।

आधुनिक युग में चित्र में सुन्दरता होना आवश्यक नहीं है। सुन्दर और असुन्दर के चक्कर में आज का चित्रकार पड़ता ही नहीं। कला और सुन्दरता का सम्बन्ध अब इतना घनिष्ठ नहीं रहा। कला की परिभाषा “किसी कार्य को सौन्दर्यपूर्वक करना कला है” में से सौन्दर्य हटा दिया गया है और केवल “कार्य करना ही कला है” यही परिभाषा अधिक मान्य है।

अब यह प्रश्न होता है कि चित्र देखनेवाला चित्र में क्या देखे । अभी तक तो वह चित्र में सौन्दर्य खोजता था, अब क्या खोजे? अभी तक तो वह चित्रों में अपनी इच्छित वस्तु खोजता था और सुन्दरता पाता था। परन्तु अब उसे चित्र में अपनी इच्छित वस्तु या सुन्दरता नहीं खोजना है, न पायेगा वह। तब तो यह कहा जा सकता है कि अब उसे उस वस्तु को खोजना है या पाना है जो उस चित्रकार ने पायी है और अपने चित्र में रखी है। इसमें ही देखनेवाले को सुन्दरता खोजनी पड़ेगी जो उसकी अपनी नहीं है बल्कि चित्रकार की है। चित्रकार अपने परिश्रम तथा अनुभव से कुछ खोजकर अपने चित्र में रखता है। उसी का आनन्द दूसरों को भी लेना है । यह कोई नयी बात नहीं है। जिस प्रकार वैज्ञानिक या दार्शनिक खोजकर वस्तु को सामने रखता है और उसका आनन्द हम भी लेते है, उसी प्रकार आज का चित्रकार भी है। जिस प्रकार एक वैज्ञानिक तथा दार्शनिक की खोज हमारे लिए हितकर है, उसी भाँति कलाकार की। जिस प्रकार वैज्ञानिक तथा दार्शनिक के कार्य में हम प्रसन्नता, सन्तुष्टि तथा सुख पाते हैं, उसी प्रकार कलाकार के कार्य में। दर्शक चित्रकार के अनुभव तथा खोज में आनन्द लेंगे।

चित्रकार जब चित्र बनाता है तो वह यह कभी नहीं सोचता कि वह अपने चित्र में सौन्दर्य भर रहा है। शायद ही कोई ऐसा चित्रकार हो जो यह जानता है कि सौन्दर्य क्या