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कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ

हारकर अपना स्नह देना रोक दें। यदि हम निरन्तर अपना स्नेह लटाते चलें तो ऐसा कदापि नहीं हो सकता कि वह वस्तु हम पर अपनी सुन्दरता न लुटाये, बुझते दीपक में स्नेह पड़ते ही वह प्रकाशमय हो उठता हैं। कला में सौन्दर्य तभी मिल सकता है जब हम उसे अपना स्नेह देंगे।