पृष्ठ:कला और आधुनिक प्रवृत्तियाँ.djvu/७५

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कलाकार का व्यक्तित्व

मनुष्य ने बर्तन बनाये जिनका कार्य वस्तु को अपने अन्दर रग्वे रहना है। घर बनाये जिनका कार्य उनके अन्दर रहनेवाली वस्तुओं को धूप, पानी, हवा इत्यादि हानिकारक वस्तुओं से बचाना है। रथ या सवारी बनी जो मनुष्य या वस्तुओं को एक जगह से दूसरी जगह ले जाती है। इसी प्रकार बड़ी-बड़ी मशीनें, मोटर, इंजन, वायुयान, पानी का जहाज इत्यादि मनुष्य के लिए कार्य करने के लिए बनाये गये। अर्थात् मनुष्य ने जितनी वस्तुओं का निर्माण किया सभी उसका कार्य करती हैं। ये सभी वस्तुएँ मनुष्य ने अपने आनन्द तथा सुविधा के लिए बनायीं। इन सबका आधार मनुष्य की क्रियात्मक प्रवृत्ति है। मनुष्य हर समय कुछ न कुछ कार्य किया करता है जब तक वह जाग्रत अवस्था में रहता है। हम कह सकते हैं, मनुष्य का कार्य, कार्य करना है अर्थात् कार्य करनेवाले मानसिक जीव को हम मनुष्य कहते हैं। जो कार्य करता है वही मनुष्य है। जिस प्रकार मनुष्य की बनायी वस्तुएँ अपना-अपना कार्य करती है, उसी प्रकार प्रकृति की बनायी वस्तुएँ अपना-अपना कार्य करती हैं। मनुष्य भी प्रकृति की एक वस्तु है और वह भी प्रकृति, सृष्टि के लिए कार्य करता है। जिस प्रकार मनुष्य की बनायी वस्तुएँ मनुष्य का कार्य करती है, उसी प्रकार प्रकृति की वस्तुएँ जिनमें मनुष्य भी सम्मिलित है, प्रकृति का कार्य करती हैं। मनुष्य कार्य करके कलाकार कहलाता है, उसी प्रकार प्रकृति भी अपना कार्य कलाकार की भांति करती है। संसार की जो भी वस्तु कार्य करती है, वह कलाकार का कार्य करती है। मधुमक्खी अपने हजारों छिद्रवाले सुन्दर छत्ते बनाती है, जो मनुष्य की कला से किसी प्रकार भी कम नहीं। फूलों से रस चुन-चुन कर शहद बनाती है, क्या यह किसी चीनी की मिल से कम महत्त्वपूर्ण कार्य करती है? इसी भाँति प्रकृति की सभी वस्तुएँ सुन्दरता के साथ अपना-अपना कार्य करती जाती हैं और ये सभी वस्तुएँ कला का कार्य करती हैं।

‘कलाकार’ शब्द मनुष्य का बनाया हुआ है, वह कलाकार के अर्थ में उस व्यक्ति को समझता है जो कला का कार्य करता है। इसमें केवल मनुष्य आता है, प्रकृति के अन्य कलाकार नहीं। यही नहीं, मनुष्यों में भी साधारणतया हम सभी को कलाकार नहीं