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कवितावली
घनाक्षरी
[१४२]


मारे रन रातिचर, रावन सकुल दल,
अनुकूला देव मुनि फूल बरषतु हैं।
नाग नर किन्नर विरंचि हरि हर हेरि,
पुलक सरीर, हिये हेतु, हरषतु हैं॥
बाम ओर जानकी कृपानिधान के बिराजैं,
देखत बिषाद मिटे मोद करषतु हैं।
आयसु भो लोकनि सिधारे लोकपाल सबै,
तुलसी निहाल कै कै दिये सरषतु हैं॥

अर्थ—रण में राक्षस मारे, और रावण को कुल समेत और सेना सहित नष्ट किया। देवता लोग अनुकूल होकर फूल बरसाते हैं। नाग, मनुष्य, किन्नर, ब्रह्मा, महादेव, विष्णु सब देखकर पुलकायमान शरीर होकर मन में कारण सोचकर हँसते हैं। सीताजी कृपानिधान रामचन्द्र के बाई ओर बिराज रही हैं जिसके देखते ही दुःख नाश होकर हर्ष उमगने लगता है। लोकपालों को आज्ञा मिली और सब अपने-अपने लोक को गये। तुलसीदास कहते हैं कि सबको निहाल करके सर्टीफ़िकट राम ने दिये।


इति लंकाकाण्ड


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