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लता है कि माता-पिता को, जो मंगन कुल के थे, बधावा बजता सुन अर्थात् पुनोत्पत्ति की ख़बर पाकर पाप का परिताप हुआ और उन्होंने बालक को जन्मते ही छोड़ दिंया। इममें तुलसीदास ने अपने छोड़े जाने का कारण स्पष्ट ‘पाप परिताप जननी जनक को’ बताया है। हरिहर प्रसाद की कवितावली में पहली पंक्ति का पाठ यों है—“जायो कुल मंगन बधाओ ऩ बजायो” आदि। इससे और भी स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि पुत्रोत्पत्ति से तुलसीदास के माता-पिता को ‘पाप का परिताप’ ऐसा हुआ कि बधाँँवा तक न बजाया और पुत्र को छोड़ दिया, जिससे पुत्रोत्पत्ति की ख़बर तक किसी को न हो। इससे यह नतीजा निकल सकता है कि तुलसीदास किसी ‘पाप’ कर्म की संतान थे। और पाप भी ऐसा घोर जिससे उनके माता-पिता को उन्हें छोड़ देना पड़ा और जिसके स्पष्ट लिखने में तुलसीदास स्वयं समर्थ न हुए। अमुक्त मूल में जन्म होना ऐसा ‘पाप’ नहीं हो सकता जिसके लिखने में तुलसीदास को अथवा किसी को संकोच होता। बाल्यावस्था में माता-पिता की मृत्यु ही कोई ऐसा पाप नहीं है जिसको लिखने में कोई हिचके। इसमें यह आपत्ति बताई जाती है कि यदि तुलसीदास के माता-पिता ने उन्हें जन्मते ही छोड़ दिया था तो उन्हें यह ज्ञान कैसे हुआ कि वे अपने माता-पिता से छोड़े गये थे या यह कि उनके जन्म-काल में बधावा नहीं बजा था। परन्तु बड़े होने पर इसका ज्ञान होना कोई कठिन बात नहीं। जिस किसी ने उन्हें पाला हो अथवा जहाँ वे वालपन में रहे हों वहाँ यह बात आसानी से प्रचलित हो गई होगी और तुलसीदास को भी बड़े होने पर उसका ज्ञान हुआ होगा।

८ वें अवतरण के आधार पर तुलसीदास का जन्म-नाम ‘रामबोला’ बतलाया जाता है। परन्तु यदि “मातु पिता जग जाय तव्यो” सत्य है, यदि अभुक्त मूल के कारण माता-पिता ने तुलसीदास को जन्मते ही छोड़ दिया था, तो उनका नाम-करण किसने किया? मा-बाप ने मुँह न देखा होगा। फिर ‘रामबोला’ नाम भी अद्भुत है। गृहस्थों में ऐसा नाम कम सुनने में आता है।

नाम से तो जान पड़ता है कि बालक तुलसी के मुँह से पहले ‘राम’ शब्द निकला होगा, जिससे उसका नाम रामबोला पड़ गया। अथवा तुलसी राम-नाम लेकर भीख माँगता रहा है, जिससे ‘रामबोला’ नाम से प्रसिद्ध हो गया। परन्तु १० वें अवतरण से यह अवश्य जान पड़ता है कि तुलसीदास को स्वयं अपनी ‘जाति-पाँति’ का कुछ पता न था। “मेरे जाति पाँति, न चहौं काहू की जाति पाँति” और “साहही को गात गोत होत है गुलाम को” स्पष्ट बताते हैं कि अपनी जाति-पाँति और गोत्र का उनको कुछ पता न था। यदि जन्म ही से वे माता-पिता से परित्यक्त थे, “बारे तेँ